पृष्ठ:भाषा का प्रश्न.pdf/७१

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भाषा का प्रश्न सिव है कि इससे सारे मुल्क-हिंद का खयाल सामने आता वरनः अगर इसको ब्रजभापा या पूरवी भापा कह दिया जाय तो यह मुल्क के एक खास जुगराकी हिस्सः के साथ खास हो जाय" 'आधुनिक हिंदी' ( खड़ी बोली या हिंदोस्तानी) ब्रजभाषा और पूरवी को एक ही बोली बनाना और हिंदीवालों को इस प्रकार व्यर्थ में कोसना किसी विद्वान, राष्ट्रभक्त मौलची को शोभा नहीं देता। पर किया क्या जाय ! सर सैयद अहमदखाँ ने। 'हिंदी' को एक ऐसा हौवा बना दिया कि उनके बाद किसी मुसलमान को उस पर विचार करना असह्य हो गया और उसके नाम तक से विरोध करना मुसलिम-धर्म का निशान समझा गया। सर सैयद अहमदखां हिंदी को किस दृष्टि से देखने की शिक्षा दे गए हैं, तनिक इसे भी देख लीजिए । सन् १८७२ ई० की बात है। मुसलमानों की शिक्षा की उन्नति के लिये एक १-सर सैयद अहमदखाँ के पहले से ही हिंदी का विरोध चला जा रहा था, पर उसमें विशेषता यह थी कि वह केवल मुसलमानों का आंदोलन होता था। दरबारी और अहिंदी यवन हो हिंदी को अव- हेलना कर एक अलग भाषा फारसी की मदद से निकालकर 'इम्तयाज' के लिये अपने बीच में चालू करना चाहते थे। परंतु सर सैयद अह- मदखाँ को इतने हो से संतोष न हुआ। उन्होंने सरकार की सहायता से हिंदी को घर-घर से खदेड़ना चाहा।