पृष्ठ:भाषा का प्रश्न.pdf/७४

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६९ राष्ट्रभाषा का नाम मुसलमानों की भाषा कही गई। नहीं तो वास्तव में वह दरवारी या फारसीदा लोगों की चलित भाषा थी। अँगरेजों ने अध्ययन के आधार पर आगे चलकर अपनी भूल को सुधार लिया और हिंदोस्तानी का अर्थ किया हिंदी तथा उर्दू के सामान्य बोलचाल का रूप यानी खड़ी बोली। अन हिंदोस्तानी का प्रयोग हिंदी तथा उर्दू दोनों के लिये निश्चित हो गया और उसका व्यवहार बोलचाल की चलित राष्ट्र-भाषा के लिये होने लगा। कांग्रेस तथा राष्ट्र के नेताओं ने इस शब्द का व्यवहार इसी अर्थ में किया और चाहा कि इसके प्रयोग से हिंदी-उर्दू का द्वंद्व नष्ट हो जाय ! पर उनको सफ- लता न मिली। - हिंदोस्तानी का अर्थ उर्दू माना गया और 'हिंदी को उससे सर्वथा भिन्न कहा गया। हिंदी का प्रचार राष्ट्र-भाषा का विरोधी समझा जाकर हिंदू-हित की आशंका से फिर उदू का झंडा खड़ा किया गया । उदू ही असली हिंदुस्तानी कही गई। हिंदी कल की बनावटी मापा घोपित की गई। 'हिंदुस्तानी' के प्रयोग से किसी झगड़े का अंत न हुआ बलिक लूवालों में एक नया विवाद खड़ा हो गया। 'हिंदुस्तानी एकेडमी' का तिमाही रिसाला निकला। उसके 'हिंदुस्तानी' रूप पर कोलाहल मच गया। कुछ बिना 'वार' की हिंदुस्तानी को ठीक नहीं समझते थे तो कुछ उसी का आग्रह करते थे। तद्भव अथवा ठेठ रूप के उपासक सर जा ग्रियसन भी बोस्तों के बजन पर हिंदोस्तों को ही शुद्ध समझते हैं और फलतः हिंदु- --उवालों की यह प्रवृत्ति विचारणीय है। पुराने उर्दू-