पृष्ठ:भाषा का प्रश्न.pdf/७६

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राष्ट्रभाषा का नाम से हमारी राष्ट्र भाषा का नाम हिंदोस्तानी भ्रामक तथा अग्राह्य है। इसके विपरीत हिंदी में इस तरह की कोई अड़चन नहीं है। मुसलमान भी शौक से अपने को हिंदी कहते हैं। सर सैयद अहमदखों तक ने इस भापा को हिंदी कहा था और मिर्जा गालिब ने तो इसे बार-बार हिंदी कहा है। हाँ, तो हिंदोस्तानी शब्द का ठेठ अर्थ हिंदुस्तानी अर्थात् हिंदू है ग्रामीणों के मुँह से तो आपने अनेक बार हिंदुस्तानी और मुसलमान का प्रयोग हिंदू और तुम्क के अर्थ में सुना होगा। कृपा करके श्राज मौलाना हाली के मुँह से भी हिंदुस्तानी का ठेठ अर्थ सुन लीजिए। 'ह्यात जावेद' यानी सर सैयद की जीवनी में उन्होंने कई बार इसका प्रयोग इसी अर्थ में किया है। 'गदर' के बाद हिंदू क्या कर रहे थे, इसका पता मौलाना हाली स्वदेश- वासियों को इस प्रकार देते हैं--- १-~-मिर्जा गालिब के पत्रों का एक संग्रह उर्दू-ए-मुअन्ना के नाम से प्रसिद्ध है। उसमें न जाने कितनी बार एक ही भाषा का हिंदी उर्दू और रेखता कहा गया है। इससे प्रतीत होता है कि गालिब के समय तक दिल्ली में हिंदी का व्यवहार प्रायः होता था। सन् १८५७ के गदर के बाद दिल्ली की शाही उलट गई। सन् १८६२ ई० में हिंदी-उर्दू का प्रश्न शिन्ना के संयोजकों के सामने एक नवीन रूप में भर सैयद की कृपा से यह द्वंद इतना बढ़ा कि 'हिंदी' का नाम ही उर्दू का विरोधी हो गया और उर्दू अब उर्दू हिंदी नहीं रही, बल्कि निरी उर्दू हो गई।