पृष्ठ:भाषा का प्रश्न.pdf/७७

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भाषा का प्रश्न "हिंदुस्तानी खैर ख्याही सरकार की आड़ में मुसलमानों से दिल खोल-खोलकर बदले ले रहे थे और अगले-पिछले बुग्ज़ निकाल रहे थे।.........अँगरेज़ हिंदुस्तानियों की आदत, तवीयत और तर्ज-खयालात से नावानिक थे। मुल्क की हुकमत उन्होंने मुसलमानों से ली थी और उन्हीं को वह अपना हरीक और सल्तनत का मुद्दई समझते थे।" (हयाद जावेद वही, पृ०६० १) अब तो किसी को भी संदेह न रहा होगा कि ठेठ द्रष्टि से भी हिंदोस्तानी हिंदुओं की ही भाषा ठहरी और वह स्वभावतः मुस- लमानों को प्रिय नहीं हो सकती। कदाचित् यही कारण है कि हम इस भाषा के लिये हिंदी तथा हिंदवी का प्रयोग तो प्रायः पाते हैं पर हिंदोस्तानी का कहीं नहीं। हिंदोस्तानी नाम की प्राचीनता के संबंध में जो प्रमाण दिए गए हैं उनमें से दो तो इतिहास से लिए गए हैं जिनमें से एक में साफ साफ कह दिया गया है कि अली आदिलशाह सानी ने फारसी का इतना अभ्यास किया कि वह हिंदोस्तानी वालना भूल १-~-'कहीं नहीं' का प्रयोग . तो इस बात का ध्यान रखते हुए किया गया है कि सैयद सुलेमान नदवी प्रभृति उर्दू के प्रचंड पंडितों ने हिंदोस्तानी की प्राचीनता को सिद्ध कर देने का प्रयत्न किया है और वे अंशतः अपने प्रयास में सफल भी हो गए हैं पर विचारणीय बात यह है कि हिंदोस्तानी का रूढ़ प्रयोग भाषा के अर्थ में कब से चालू हुआ है, किसने हमारी भाषा को हिंदोस्तानी के नाम से याद किया ? मुसलमानों ने या फिरंगियों ने?