पृष्ठ:भाषा का प्रश्न.pdf/७८

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राष्ट्रभाषा का ना गया--"फारसी रा खूब सी गुप्त किताब हिंदोस्तानी मुत्कल्लिम नमी शुद। अब आप स्वयं विचार सकते हैं कि इतिहास का यह प्रमाण कहाँ तक आपके हृदय में हिंदोस्तानी का प्रेस उत्पन्न करता है। साथ ही इस बात का ध्यान रखें कि इसी अली आदिलशाह का राजकवि नसरती इस बात का दावा करता है कि उसने दक्खिनी जवान को कहाँ से कहाँ पहुँचा दिया- 'जनम खाम था सो दक्खन का फलाम, हुआ पोख्त तुझ तरबियत ते तमाम ।" कहने की आवश्यकता नहीं कि नसरती का मतलब है कि अली आदिलशाह सानी के शासन में दक्खिनी में फारसी का बोलबाला हो गया और भापा फारसी की ओर मुड़ गई। अच्छा हो, इसे उसी के मुँह से सुन लें। उसका कहना है-"दखिन का किया शेर जों फारसी 1५१ बादशाहनामा में हिंदोस्तानी' के साथ भापा का स्पष्ट उल्लेख है। "हिंदोस्तानी जवान' में हिंदोस्तानी संज्ञा नहीं, विशेषण है। निदान हम उसे रूढ़ नहीं कह सकते। 'जवान हिंदोस्तान' के प्रयोग में भी यही बात पाई जाती है। अस्तु, हमें सानना पड़ता है कि हमारी सापा का हिंदोस्तानी नाम मुसलमानों का दिया हुश्रा नहीं, बल्कि गौरांग प्रभुत्रों का चालू किया हुआ है। हिंदी तथा हिंदुस्तानी के विषय में नोट करने की बात यह है कि हिंदुस्तानी का एक ठेठ अर्थ है-सामान्यतः संयुक्तप्रांत १-उर्दू (वहाँ) अक्तूबर सन् १९३४ ई० पृ० ६३३ !