पृष्ठ:भाषा का प्रश्न.pdf/८७

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भाषा का प्रश्न जिस 'हिंदोस्तानी' की चर्चा की गई है, वह वही हमारी पुरानी हिंदी या हिंदवी है, न कि कल की दरबारी जबान उर्दू, जिसमें फारसी और अरबी की भरमार है। . फारसी के अधिक अभ्यास के कारण जो भाषा सरलता से भूली जा सकती है, वह अवश्य ही खरी या ठेठ. 'हिंदुस्तानी' ही होगी, न कि फारसी- अरवी से लदी हुई उर्दू। रही गाने की बात। उसे आज भी आजमाकर देख सकते हैं कि पक्के और प्रवीण रावैए की पहचान तथा भाषा क्या है। वह 'ग़ज़लगोई और गाने का भेद स्वयं बताकर कोई पक्का हिंदी गाना आपके सामने रख देगा और तब आप स्वयं बादशाहनामे की 'हिंदोस्तानी जवान' अर्थात् हिंदी भाषा का अर्थ समझ जायेंगे। याद रहे, शाहजहाँ के समय तक उर्दू भाषा में कोई रचना नहीं हुई थी। वली का दीवान तो मुहम्मदशाह के समय में देहली पहुंचा और उनकी तूती 'हातिम' के सर पर सवार हो अहिंदी बोली बोलने लगी। फिर भला उससे इतने दिन पहले की भाषा को हम उर्दू क्योंकर मान ले ? निदान हमें मानना पड़ता है कि, उक्त अवतरणों

. १-जो लोग उर्दू भाषा का घर गजनी, लाहार, मुल्तान या

किसी लश्कर या कैंप में हूँढ़ने जाते हैं उन्हें याद रखना चाहिए कि उर्दू का यह : रंग बनावटी और कल का है। भूलना न होगा कि पुराने मुसलिम लेखकों की दृष्टि में शाहजहानाबाद का उर्दू-ए-मुअल्ला ही उर्दू का स्रोत है। दरिया-ए-लताफत में सैयद इंशा ने इसे इतना स्पष्ट कर दिया है कि इसमें किसी प्रकार का मतभेद हो ही नहीं सकता।