पृष्ठ:भाषा का प्रश्न.pdf/८८

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हिंदुस्तानी

में भी हिंदोस्तानी' का वही 'हिंदुस्तानी' अर्थ है, जो हम कुछ पहले ही ऊपर देख चुके हैं। अत्र प्रश्न उठता है कि आखिर सैयद साहब को यह पतवा देने का साहस क्यों हो गया । : क्यों उन्होंने दावे के साथ 1 "हम अपने बदगुमान दोस्तों को बावर करना चाहते हैं कि यह ल ज हिंदुस्तानी मुसलमानों के इसरार से और मुसलमानों की तुल्को तसल्ली के लिये रखा गया है और उससे मुराद हमारी वही जवान है जो हमारी बोलचाल में है। हमको जो कुछ शिकायत है वह यह है कि हिंदी और हिंदुस्तानी को हममानी और मुरादिफ क्यों ठहराया गया है। अफसोस है कि ऐसे मसले को जो सरासर अदबी और लसानी है ग़लत तौर से सवाली बनाया जा रहा है। जज़बात से खाली होकर वा कानात और दलायल. पर गौर करना चाहिए और वह कदम उठाना चाहिए जो हमारी जवान की हिफाजत और तरक्की का बास हो हम इसे सैयद साहब का मजहबी जोश, हठधर्मी, द्वेप अथवा अज्ञान नहीं कह सकते। हम अच्छी तरह जानते हैं कि यह उनके दिल की तलछट और गहरे अध्ययन का निष्कर्ष है। पर हमारा निवेदन है कि सब कुछ सही, पर यह सही नहीं कि साहब को हिंदुस्तानी का ठीक ठीक पता है जनाब सैयद --अलीगढ़ मैगजीन, जुलाई सन् १६३७ ई०, पृ०८।