पृष्ठ:भाषा का प्रश्न.pdf/९०

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२ । हिंदुस्तानी और सर सैयद अहमदखौं कंपनी सरकार के युवक चाकर थे। उस समय उन्होंने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक 'अलारुस्सनादीद' में लिखा- "जो कि यह जवान खास बादशाही बाजारों में मुरव्वज थी इस वास्ते उसको जवान उदू कहा करते थे और बादशाही . अमीर-उमरा इसी को बोला करते थे गोया कि हिंदुस्तान के मुसलमानों की यही जबान थी।" हिंदुस्तान के मुसलमानों के बारे में उनकी राय वही थी जो इसी पुस्तक में, 'राष्ट्रभापा का निर्णय' शीर्षक में, पृष्ट ६१ पर तीसरे प्रघट्टक में उदधृत है । कहने का साफ मतलब यह कि उर्दू इस मुल्क में बाहर से आनेवाले मुसलमानों अथवा उन्हीं के हमदर्द नव मुसलिमों की जवान है। मुश्तरकः जवान' तो वह तव बनी, जब देहलो दरबार मिटकर खाक हो गया और जनता की ओर से हिंदी या हिंदुस्तानी की पैरवी आरंभ हुई। हिंदी की पैरवी का प्रभाव यह पड़ा कि उर्दू उन अदना कौमों की भी मातृभाषा बन गई, जो सदा हिंदुओं के साथ थे। इतना ही नहीं, सन् १८४७ ई० में सर सैयद ३ ने लिखा था- १ -प्रथम संस्करमा, सन् १८४७ ई., बाब चौथा, पृ०६-१० २-रूपदाद इजलास, मेडिकलहाल प्रेस बनारस, सन् १८७२, 'पृ०४ असारसनादीदा प्रथम संस्करण, पृ० १०, वाव चौथा 1