पृष्ठ:भाषा का प्रश्न.pdf/९१

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

आषा का प्रश्न "अगर च इस जबान (उर्दू) में अक्सर फारसी और अरवी और संस्कृत के अल्फाज मुस्तमल हैं और बाज़ बाजों में कुछ त युर व तबदील कर ली है, लेकिन इस जमान: में और शहर के लोगों ने यह तरीकः एस्तियार किया है कि उर्दू जवान में या तो फारसी की लुगत बहुत मिला देते हैं या फारसी की तरकीब पर लिखने लगते हैं। यह दोनों बातें अच्छी नहीं । इन में उदूपन नहीं रहता।" किंतु जब मुगलों का सितारा व गया और अँगरेज सच- मुच भारत के सम्राट हो गए, तब सर सैयद को मुसलमानों की चिंता हुई, और धीरे धीरे उनको वह पाठ पढ़ाया कि फिर कभी उनको हिंदुस्तानी-हित की सुधि न हुई। उनकी देख-रेख में पले जीवों में मौलाना हाली का नाम अमर है। 'मुसहस हाली को कौन नहीं जानता। वही 'हाली' हयात जावेद, याने सर सैयद की जीवनी में उसी उर्दू के विषय में एक जगह लिखते हैं- "उर्दू ज़बान जो दरहकीकत हिंदी भाषा की एक तरक्की- याफ्तः सूरत है और जिसमें अरबी-फारसी के सिर्फ किली कदर अस्मां उससे ज्यादह शामिल नहीं हैं जितना कि दाल में नमक होता है उसको हमारे हमवतन भाइयों ने सिर्फ इस विना पर मिटाना चाहा कि उसकी तरक्की की बुनियाद मुसलमानों के अहद में पड़ी थी।" १-हयात जावेद प्रथम संस्करण प्रथमं मारा .प.938... ।