पृष्ठ:भाषा का प्रश्न.pdf/९४

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हिंदुस्तानी आप 'उसी उर्दू, उसी जवान, उसी बोलचाल को. जो 'इम्त- याज्ञ' के लिये देहली दरबार में 'ईजाद की गई और शाही 'अमीर-मरा की जवान बन गई, हिंदोस्तानी' कहते हैं तो कहते रह। आपको रोकता कौन है ? पर कृपा कर हमें भी अपनी उस लोक या राष्ट्र-भाषा को हिंदुस्तानी कहने दें, जिसे आज सरकारी दुनिया इसी नाम से चाद करती है। दुनिया क्यों ? 'हिंदुस्तानी' नाम भी तो आप ही ने हमें दिया है। सारा कहना और दाने के साथ कहना यह है कि सचमुच हम में एकता तव तक स्थापित नहीं हो सकती, जय तक हम हिंदू-मुसलमान एक यानी सच्चे हिंदुस्तानी न हो अब वह समय आ गया है कि हम अपने आचार- विचार से सर सैयद के उस इम्तयाजी दावे को गलत सावित कर दें कि 'मुसलमान इस मुल्क के रहनेवाले नहीं हैं, अथवार 'इँगलिश नेशन हमारे मातृह मुल्क में आई' और दृढ़ता, चीरता तथा सचाई के साथ यह घोषित दें कि......३ "हम और हिंदृ एक ही खाके-हिंद की पैदायिश हैं।" 'जाय। १ -रूयदाद इजलास ( वही)पृ०४ । २-हयातजावेत (.वहीं) पृ० ५१ (दूसरा भाग ) पर अवतरित । ३-खुतबात आलियः, हिस्सः अव्वल, मुसलिम यूनीवर्सिटी प्रेस अलीगढ़, सन् १६२८ ई०, पृ० ५५ (सरदार नुहम्मद हयातन्त्रों का सन् १८६० ई० का व्याख्यान)।