पृष्ठ:भाषा का प्रश्न.pdf/९५

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भापाका प्रश्न . मार्मिक तो यह देखकर होता है कि अभी उस दिन एक सज्जन ने अपने हिंदुस्तानी होने का दावा भी किया है, तो इस रूप में- "हम पूछते हैं कि जब हम खुद हिंदुस्तानी ही के नाम से मशहूर हैं तो फिर इसको अपनी जवान के लिये क्यों बुरा समझते हैं ? जिस चीज को अपनी 'जात' के लिये पसंद करते हैं, उसे अपनी सिफत' के लिये क्यों नहीं पसंद करते ?" निवेदन है कि यही तो आपकी गुमराही है। श्राप हिंदु- स्तानी ही के नाम से मशहूर नहीं बल्कि सचमुच 'हिंदुस्तानी ही हैं । यह तो बाहरी मुसलमानों की गुलामी का असर है कि उन्हीं की देखा-देखी आप भी अपने को हिंदुस्तानी नहीं समझते और हिंदुस्तानी नाम ले चिढ़ते हैं। नहीं तो वास्तव में श्राप भी हिंदी हैं, हिंदुस्तानी हैं। आपकी भाषा भी हिंदी है, हिंदुस्तानी है। . 'उ' तो उन लोगों की जवान है, जो आज भी अपने को 'तुर्क' समझते हैं और इसलाम को एक जत्थे के रूप में याद करते हैं। उस जत्थे के रूप में, जिसे भारत के गारत होने का दुःख नहीं, बल्कि उसके लूटने-खसोटने का गर्व है। क्या इस- लाम का सच्चा अर्थ यही है ? यदि नहीं, तो आप बदगुमान हो उसे बदनाम क्यों करते हैं ? क्या ही अच्छा हो, यदि आप हिंदी कवि नूर मुहम्मद के इस कथन पर ध्यान दें- १-अलीगढ़ मैगजीन, जुलाई सन् १९३७ ई०, पृ०.२ । २---सन् ११८७ हि० (. १७७३ ई० ) की रचना अनुराग-बाँसुरी की हस्तलिखित प्रति से।