पृष्ठ:भूगोल.djvu/१०५

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१.४ भूगोल [वर्ष १६ वीरसिंह ( १७६६-६३)- १८३२ में रतनसिंह की मृत्यु हो गई। गद्दी के लिये गुमानसिंह को वीरसिंह देव पर दया आई इसलिये वंश के अन्दर झगड़ा हो गया जिस में राजा के बहुत से बुलाकर राज्य में नौकरी दे दी और ८०.०० मूल्य की वंश वाले मारे गये। जायदाद भी मताण्ड परगने को दी। वीरसिंह ने अपनी लक्ष्मण सिंह (१८३२-४७ )- जायदाद को और बढ़ाना चाहा इसलिये गुमान सिंह ने और भारत सरकार ने लक्ष्मण सिंह, खेत सिंह के पुत्र को अधिक दूरी पर मताण्ड परगने की जगह १७६८ में बिजावर राजा स्वीकार किया। १८४७ में उसकी भी मृत्यु हो गई। का परगना दे दिया। थोड़े ही समय में वीरसिंह ने अपने उस समय उसका पुत्र भानप्रतापसिंह पाँच साल का था। राज्य को बढ़ा लिया। इस कार्य में उसे उसके सेनापति बेनी राज-काज खेतसिंह की स्त्री करती थी। यद्यपि रानी एक बहादुर ने बड़ी सहायता दी। पर्दानशीन रमणी थी तो भी विप्लव काल में उसने अच्छी जब गोसाई अलीबहादुर और हिम्मतबहादुर ने शान्ति राज्य में रक्खी । गदर के समय में ही रानी को बुन्देलखन्ड पर आक्रमण किया तो वीर सिंह ने उन्हें रोकना राजा लिए खिलअत मिली ग्यारह तोपों की चाहा, किन्तु हार हुई। सलामी का हुक्म हुआ। १८६२ में गोद लेने की सनद केसरीसिंह ( १७९३-१८१०)- दी गई। १८६६ में महाराना को पदवी मिली। राज्य की धोरेवाल सिंह अपने पिता वीरसिंह देव से पहले ही आर्थिक दशा बिगड़ जाने के कारण राज्य १८६७ ई. में मर चुका था। इसलिये हिम्मत बहादुर ने अलीबहादुर को भारत सरकार में मिला लिया गया । सलाह दी कि एक सनद लिख कर केसरीसिंह को उसके सावन्तसिंह (१८८८-)- पिता की जायदाद दे दी जाय जिससे वह नवाब के अधीन भानसिंह के पुत्र न था इसलिए ओरछा राज्य के राजा बना रहे । यह सनद पाँचौं अक्टूबर सन् १८०२ ई० को के पुत्र राव राजा सावन्तसिंह को गोद लिया। १८६६ लिखी गई। में भानसिंह की मृत्यु हुई । १६०३ में राजा शासन करने जब अंग्रेज शक्ति में आए तो केसरीसिंह ने अंग्रेजों से की आज्ञा दी गई। १६०५ ई० में राजा शाहजादा और सनद लेने व दोस्ती करने की अपील की। इसी समय कुछ शाहज़ादी के शुभागमन के समय इन्दौर पहुँचे । राजा गाँवों के विषय में चरखारी और छतरपुर राज्यों से झगड़ा दीवान की सहायता से शासन करता है। था इसलिये सनद न मिल सकी। अंत में लक्ष्मण डोवा राजा की सहायता के लिये २४ सवार और पैदल द्वारा यह झगड़ा मिटाया गया। १८१० में केसरी सिंह की सिपाही और E तोपची हैं। ८४ पुलिस व १८८ चौकी- दार हैं। रतनसिंह ( १८१८-३२)- राज्य चार तहसीलों में विभाजित है। विजावर, केसरी के तीन पुत्र रतन, खेत और शत्रु जीत थे। बड़े गूलगंज, रगौली और करैया की तहसीलें हैं । प्रत्येक तहसील पुत्र रतन सिंह गद्दी पर बैठे। अब गाँवों के बारे में निपटारा एक तहसीलदार के अधीन है । एक नायब तहसीलदार भी हो गया था इसलिये १८११ में अँग्रेज सरकार ने सनद सहायता को रहता है। मंजूर कर दी। आय-व्यय--- सनद द्वारा राजा को राज्य का पूरा अधिकारी अगरेज राज्य की सालाना आय ३,२४,००० रुपया है। सरकार ने माना और राज्य की प्रजा को कहा कि वे राजा वर्तमान नरेश हिज़ हाईनेस महाराजा सवाय सर को ही माने । राजा व राजा के वंशज को सनद द्वारा राज्य सावन्तसिंह बहादुर के० सी० आई० ई० ( बुन्देला ) हैं। पर पूरा अधिकार मिला। रतनसिंह के समय में राज्य आपको ११ तोपों की सलामी लगती है और आप शासन उसका भाई खेतसिंह करता था। चैम्बर आफ प्रिन्सेज के मेम्बर हैं। मृत्यु हो गई।