पृष्ठ:भूगोल.djvu/११२

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अङ्क १-४]] पत्री राज्य १११ कूट के समीप दुर्गा तालाब की लड़ाई में अमानसिंह के हाथ चली गई। समय अच्छा जानकर हिम्मतसिंह मारा गया। यह राजा अपने दान के लिये प्रसिद्ध ने भी अंग्रेजों से सन्धि कर ली। है । चित्रकूट के मन्दिरों के लिये इसने एक लाख किशोरसिंह ( १७६३-१८३४ )- की भूमि दी। १८०३ ई० में अंग्रेजों का अधिकार भलीभाँति हिन्दूपत ( १७५८-७६ )- स्थापित हो चुका था। इस समय किशोरसिंह नाम अमान के बाद हिन्दूपत राजा हुआ । इसी समय के लिये राजा था। वह देश निर्वासित था। १८०७ शुजाउद्दौला का बुन्देलखण्ड पर आक्रमण हुआ। में अंग्रेजों ने सनद देकर उसे राजा माना और दूसरे राजाओं के साथ साथ हिन्दूपत को भी खिराज गद्दी पर बैठा दिया। किशोर बड़ा ही निर्दयी राजा देनी पड़ी। हिन्दूपत ने पन्ना में जुगलकिशोर का था । इसलिये कई मर्तबे अंग्रेजों को रुकावट डालनी मन्दिर, महाराजगंज का किला और कालिञ्जर किले पड़ी। अन्त में १८३२ में राजा ने छतरपुर के कुँअर में एक महल बनवाया। अगहन बदी नौमी को प्रतापसिंह के हाथ में राज की बागडोर दे दी। दो उसकी मृत्यु हो गई। साल बाद राजा को राज्य से बाहर निकालना अनिरुद्ध ( १७७६-८०)- आवश्यक समझा गया। हरवंश गद्दी पर बैठा किन्तु वह भी १८४६ में मर गया। इसके कोई पुत्र न था हिन्दूपत के बाद उसका नाबालिग़ पुत्र अनिरुद्ध इसलिये छोटा भाई नृपतसिंह गद्दी पर बैठा। गद्दी पर बैठा । बेनी हज़री और खेमराज चौबे नृपतसिंह ( १८१९-७०)- राजकाज का प्रबन्ध करते थे। १७७७ में लार्ड हेस्टिंग्ज़ ने रघुनाथराव को किशोरसिंह की मृत्यु होने पर उसकी दोनों पेशवा बनाने के लिये सहायता देनी चाही। इसलिये रानियाँ सती हुई। इसलिये अंग्रेज सरकार ने बङ्गाल से एक सेना बम्बई के लिये करनल लेसली की नृपत से कहा कि जब तक सती की प्रथा राज्य अध्यक्षता में भेजी गई । जब सेना बुन्देलखण्ड में घुसी से न उठेगी तब तक अंग्रेज सरकार नृपत तो अनिरुद्धसिंह की सेना ने अंग्रेजी सेना को रोका । राजा नहीं मान सकती । १८५७ में नृपत अंग्रेजों का पक्का साथी निकला । यद्यपि उसके मऊ के स्थान पर राजा की हार हुई। करनल लेसली के मरने पर जनरल गाडर्ड ने बेनी हजूरी राज्य में ही प्रजा इस बात में उसके विरुद्ध से सहायता के लिये अपील की, किन्तु सहायता के थी। जब जैतपुर की बागी रानी ने दमोह का जिला लिये राजा ने इन्कार किया। इसी समय राज्य के ले लिया तो इस के लिए जबलपुर के कमिशनर ने राजा पन्ना को लिखा कि रानी को मार भगाये । अन्दर आपस में झगड़ा हो गया और अनिरुद्ध मारा गया। सरनतसिंह, घोखलसिंह और दूसरे राजा ने शीघ्र ही अपने बहनोई कुँवर शामले जू देव भाई गद्दी के लिये लड़ने लगे। अन्त में घोखलसिंह को राज्य-सेना के साथ भेजा। रानी को मजबूर गद्दी पर बैठा। होकर प्रान्त छोड़ना पड़ा। दो साल तक यह जिला राजा के अधिकार में रहा । मेजर इलिस भी पन्ना घोखलसिंह ( १७८५-६८ )- में राजा की शरण में रहा । कालिंजर का किला इस इसके गद्दी पर बैठते ही घरेलू झगड़े और समय राजा के अधिकार में ही था, उसने विप्लव- अधिक बढ़ गये और आपस की फूट देख हिम्मत कारियों से जाकर छीन लिया था। बाद को लेफ्टि- बहादुर गोसाई और अलीबहादुर ने मिलकर पन्ना नेन्ट रिमिन्गटन भी राजा की सहायता को पहुँच पर धावा मारा और उसे अधिकार में कर लिया। अलीबहादुर बाँदा का नवाब हो गया। दूसरी नवम्बर ५८५७ में रिमिन्गटन ने राजा के बारे दिसम्बर १८०२ में बेसीन की सन्धि हुई जिसके में यह लिखा, “यह किला ( कालिंजर ) चारों ओर अनुसार पेशवा की बुन्देल खण्ड की जायदाद ब्रिटिश से विप्लवकारियों से घिरा है केवल पन्ना की ओर गया।