पृष्ठ:भूगोल.djvu/११३

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११२ भूगोल [वर्ष १६ खाली है । पन्ना में राजा बड़ी चतुरता और योग्यता की निगरानी में दीवान तथा एक कौन्सिल करती के साथ शान्ति स्थापित किये हुए है। राजा को इसके थी। लिये कोटि-कोटि बार धन्यवाइ है। यही एक राजा राज्य सम्बंधी सभी कार्यों में राजा का निर्णय है जो अंग्रेजों का पक्का हितैषी और साथी है। राजा अन्तिम होता है । राजा की सहायता के लिये दीवान अंग्रेजों के साथ जान निछावर करने को तैयार है। होता है । क्रिमिनल मामलों में राजा के अधिकार राजा पब्लिक में अंग्रेजों के साथ निकलने में नहीं कम हैं और अंतिम निर्णय भारत सरकार के हाथों हिचिकता और बराबर साथ-साथ रहता है। यही में है । महाराज बड़े साहसी और उत्साही व्यक्ति हैं। कारण है जिससे बागियों की हिम्मत यहाँ आक्रमण आप सार्वजनिक कार्यों में काफी दिलचस्पी से कार्य करने की नहीं पड़ती। हैं इस नेकी के बदले में राजा को २०,००० की राजा के सम्बन्धी- खिलअत और सिमरिया का परगना मिला । १८६६ महाराज के छोटे भाई राघवेन्द्र सिंह और भार- में राजा को 'महेन्द्र' की टाइटिल मिली । १८६२ ई० तेन्द्र सिंह हैं। महाराजा रुद्रप्रताप की दोनों रानियाँ में गोद लेने की सनद दी गई । इटारसी से जबलपुर हैं और राव राजा खुमानसिंह की दोनों रानियाँ हैं । तक राजा ने भूमि रेल के लिए दे दी। १८७० ई० में जिनमें से एक महाराज वर्तमान की माता हैं । महा- राजा शिकार खेलते हुए शेर द्वारा मारा गया। पुत्र राज की एक बहन राजू राणा हैं। रुद्र गद्दी पर बैठे। शासनप्रणाली- रुद्रप्रतापसिंह ( १८७०.६३)- पन्ना, पवोई, महोदर, मलहर, विरसिंहपुर, १८७५ में महाराज रुद्रप्रतापसिंह के० सी० एस० धरमपुर और अक्टोहन ये सात तहसीलें हैं। आई० बनाए गये। यह उपाधि १८७६ में राजा को सप्तम एडवर्ड द्वारा कलकत्ता में प्राप्त हुई। १८७७ में एक सालाना आय ८,६६,००० रुपये है। झंडा और सुनहरा मेडिल मिला । राजा १८८३ ई० में पुत्रहीन सुरलोक सिधारे । उनके भाई लोकपालसिंह कुल व्यय ४ लाख रु० है। राजा बने । महाराज लोकपालसिंह के समय में कोई खास घटना नहीं हुई। लोकपाल के बाद माधोसिंह १८६ पैदल, ३१ सवार, १४ तोपों, ८ लाल- गद्दी पर आये। किन्तु खुमानसिंह की हत्या कराने पिटारा या हथियारबन्द हैं । राज्य में १६ बन्दूकें हैं। पर, खुमानसिंह के पुत्र यादवेन्द्रसिंह गद्दी पर बैठाये वर्तमान नरेश, कैप्टन हिज़ हाईनेस महाराजा गये। महेन्द्र सर यादवेन्द्रसिंह बहादुर के० सी० एस) यादवेन्द्रसिंह ( १६०२)- आई०, के० सी० आई० ई०, (बुन्देले राजपूत ) हैं। महाराज यादवेन्द्र की अवस्था १९०७ में केवल आपको ११ तोपों की सलामी लगती है। आप चौदह साल की थी। राज-काज पोलिटिकल एजेण्ट चैम्बर आफ प्रिन्सेज़ के मेम्बर हैं। प्राय- व्यथ- सेना--