पृष्ठ:भूगोल.djvu/१७२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

१७१ खरसवाँ राज्य पूर्वी भारतीय राज्यों में खरसवों एक प्रमुख राज्य आधोन रहें हैं और समय सयय पर सहायता करते है। यहां के शासक पोराहाट के छोटे राजा के घराने आए हैं । यह राज्य अँग्रेजों को किसी भांति का कर के हैं । १७९३ ई० में कुछ सरदारों ने राज्य में बड़ी नहीं देता है । यहां के शासक छोटा नागपुर के कमि- गड़बड़ी मचा दी। उस समय खरसवां-नरेश और शनर के श्राधीन हैं । बंगाल नागपुर रेलवे इस राज्य सरायकेला के कुअर साहब के बीच समझौता हुआ। में होकर जाती है । इसका क्षेत्रफल १५७ वर्गमील उसी समय अंग्रेजों का ध्यान इस राज्य की ओर जन-संख्या ४५,००० और आमदनी १,५०,००० आकर्षिक हुआ। ब्रिटिश सरकार ने यहां के राजा से संधि कर ली। तब से ये बराबर अँग्रेजों के

नरसिंहपुर यह उड़ीसा प्रान्त का एक राज्य है । इसके उत्तर दिया जाता है। ३०० साल का समय व्यतीत हुआ में पहाड़ी है जो अंगुल और हिन्दोल से इसे अलग जब कि इस राज्य की नींव एक राजपूत ने डाली थी। करती है। पूर्व में बारम्बा दक्षिण और दशिण-पश्चिम तब अब तक यह राज्य कायम है । राज्य में लड़कों में महानदी और पश्चिम में अंगूल है इस राज्य का की शिक्षा के लिये बहुत से स्कूल हैं । राजा की सेना में क्षेत्रफल २०७ वर्गमील है। यहां की जनसंख्या ३८३ सिपाही है और राज्य में १९६ पुलीस हैं। ४१,००० है। राज्य की सालाना आय १११,१०५ यहां के बर्तमान नरेश राजा अनन्त नारायण रु० है और २१७६ सालाना कर अँग्रेज सरकार को मानसिंह हरी चन्दन महोपात्र हैं । XXXX सरगूजा राज्य सरगूजा मध्य भारत का एक राज्य है। इसका सेना ने राज्य के अन्दर जाकर शान्ति स्थापित की। क्षेत्रफल ६०५५ वर्गमील और जन-संख्या २,४८,७०३ फिर भी यहाँ के राजा और उसके सम्बन्धियों के बीच है । इस राज्य की सालाना आय लगभग दो लाख है। झगड़ा हो गया। १८५८ तक राज्य के अन्दर उथल- मनीपत एक उँचला प्रदेश इस राज्य की दक्षिणी पुथल रही और शांति स्थापित न हो सकी । उसी साल सीमा बनाता है। इस राज्य के पुराने इतिहास का ठीक २ बरार के राजा मुधोजी भोंसला की राय से इस राज्य पता नहीं चलता है। किन्तु पालमऊ के किस्से कहा को अंग्रेजों ने अपने अधिकार में कर लिया। तब से नियों से पता चलता है कि यहाँ के वर्तमान शासक यह राज्य अब तक अंग्रेजों के आधीन है। यहाँ की पालमऊ रक्षल राजा के घराने के हैं । १७५८ में यहाँ मुख्य उपज, चावल, चना, जौ और दूसरे अनाज मरहठा सेना आई। तभी यहाँ के नरेश को भोंसला हैं। राजा की आधीनता स्वीकार करनी पड़ी। अठारहवीं यहाँ के वर्तमान नरेश महाराजा रामानुज सरन- सताब्दी के अन्त में यहाँ के राजा ने अंग्रेजों के सिंह देव सी० बी० ई० हैं, श्राप १९१८ ई० में गही विरुद्ध पालमऊ के विद्रोहियों को सहायता दी । अंग्रेजी पर बैठे।