पृष्ठ:भूगोल.djvu/१९

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१८ भूगोल [ वर्ष १६ मुसलमान श्रा डटे । पर यह किला कभी मुसलमानों सिन्धिया महाराज की सैनिक शक्ति का मुकाबला और कभी राजपूतों के हाथ में रहा । करने वाला कोई न था। कई बार अंग्रेजों को हटना इसी बीच में महाराजा शिवाजी ने महाराष्ट्र में पड़ा। यदि फ्रांसीसी सैनिकों को अंग्रेजों ने अपनी एक नई शक्ति पैदा कर दो । उनके मरने के बाद इस ओर फोड़ न लिया होता तो आज हिन्दुस्तान का नये राष्ट्र को बागडोर पेशवाओं के हाथ में आई। इतिहास कुछ और ही होता । वेलेजली की कूटिनीति इनका दरबार पूना में था । इसी दरबार में १७२५ ई० ने सिन्धिया महाराजा के राज्य को बढ़ने से रोक में देखने में साधारण व्यक्ति ने अपने रोज के काम दिया । १८४३ ई० में महाराज दौलतराव के निःसन्तान में ही अपूर्व स्वामि-भक्ति और बड़प्पन का परिचय मर जाने के बाद गद्दी पर बैठने के लिये झगड़ा हुआ दिया। पेशवा महाराज दरबार के काम में लगे हुए थे। इस झगड़े में अंग्रेजी कम्पनी को हस्तक्षेप करने का उनके चप्पलों की चौकसी का काम भावी साम्राज्य के अवसर मिल गया। पुन्नियार और महाराजपुर की जन्मदाता श्री राना जी कर रहे थे। सभा में देरो लड़ाई के बाद ग्वालियर की सैनिक शक्ति बहुत कुछ अविक लग जाने से बाहर राना जी को नींद लग गई। घट गई। वे सो गये लकिन चप्पल उनको छाती से लगे हुये थे। गदर के समय में प्रधानमन्त्री सर दिनकर गव बाहर आकर पेशवा महाराज इस विलक्षण स्वामि- ने ग्वालियर राज्य को विद्रोह से अलग रक्खा । तब भक्ति को देखकर दंग हो गये। वे ताड़ गये कि ऐसा से अब तब यहां बराबर शान्ति रही। कर्तव्य-परायण पुरुष भारी जिम्मेवारी के योग्य है । ग्वालियर का लश्कर मुहल्ला नया है । जब महा- राना जी शीघ्र ही अपने योग्य राष्ट्र के ऊँचे पद पर दाजी दक्षिण से फौज के साथ उत्तरी भारत का और पहुँच गये । महाराष्ट्र को अदम्य सेना के वे बड़े ही प्रस्थान करते तो यहाँ उनका फौजी पड़ाव रहता था। लोकप्रिय सेनापति थे। मरने पर उन्होंने मालवा के फज डेरों में रहती थी। बीच में एक बड़ा गज्य अपने सुपुत्र महादाजी को छोड़ा। पानीपत (१७६१) की भीषण लड़ाई से महाराष्ट्र की पीछे से सुन्दर मकान बन जाने पर भी इसका उन्नति कुछ दिन के लिये रुक गई। महादाजी के ऐसा नाम लश्कर ( फौजो पड़ाव ) ही पड़ गया। फरसा लगा कि शत्रु लोग उन्हें मरा हुआ समझ कर अन्य प्रसिद्ध नगर चलते बने । पर एक भिश्ती ने उन्हें उठाकर दक्खिन में पहुँचाया। वे अच्छे हो गये । धीरे धीरे पूना दरबार उज्जैन नगर एक पुराना तीर्थ है । यह नगर क्षिप्रा में उनको शक्ति सब से अधिक बढ़ गई। लेकिन सच्चे नदी के दाहिने किनारे पर स्थित है। नगर आयता- देश भक्त की भाँति उन्होंने अपने बल को पेशवा की कार है और दो वर्ग मील में फैला हुआ है । पन्द्रहवीं सेवा में लगाया । अंग्रेजी प्रलोभनों से वे कोसों दूर सदो में इसके चारों ओर एक चारदीवारी बनी थो पर रहे । अपने जीवन में उन्होंने महाराष्ट्र को उन्नति के अब केवल कहीं कहीं इसके निशान शेष बचे हैं । शिखर पर पहुँचा दिया । पर देश के दुर्भाग्य से पुराना शहर वर्तमान नगर से २ मील उत्तर को ओर १७९४ ई० में उनकी मृत्यु हो गई। बसा था। अब इसके खंडहर शेष हैं। शायद भयानक बड़े राज्य का भार १३ वर्ष के नवयुवक सम्राट वाद या भूकम्प से यह शहर नष्ट हो गया। पुराने दौलतराव सिन्धिया के कन्धों पर अचानक आ पड़ा। जवाहरात, मुहरें और सिक्के वर्षा में पानो बासन के पर इस वीर ने बड़े साहस से अपने शत्रुओं को परास्त बाद कभी कभी मिल जाते हैं। । किया। उसने अपना राज्य पंजाब तक बढ़ा लिया। वर्तमान उज्जैन शहर कई मुहल्लों में बटा हुआ दिल्ली का बादशाह उनको दी हुई पेन्शन पर गुज़र है। एक मुहल्ला सवाई जैसिंह ( जैपुर नरेश) करता था। उन्हें अपनी सेना को सुधारने को अजब की स्मृति में जैपुग कहलाता है। इन्हीं महाराज लगन थो । फौज को कवायद सिखाने के लिये उन्होंने ने यहाँ एक बेधशाला बनवा दो थी । इसके कई फ्रांसीसी लोग भी नौकर रख लिये । इस समय खंडहर अब तक मौजूद हैं । कोट ( किला 1