पृष्ठ:भूगोल.djvu/२९

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२८ - भूगोल [वर्ष १६ यहाँ गर्मियों में साधारण गर्मी पड़ती है और राज्य में सबसे अधिक संख्या मुसलमानों की जाड़े में विकराल सरदी पड़ती है । यहाँ की बसन्त ऋतु है। उसके पश्चात् हिन्दुओं की संख्या है। बौद्ध, बड़ी ही सुहावनी होती है, पतझड़ की ऋतु सूखी सिक्ख, और दूसरी जातियों के लोग कम हैं। होते हुये भी स्वास्थ्यवर्द्धक होती है। यहाँ सोंत (वसन्त), काश्मीर घाटी में काश्मीरी भाषा ( जो संस्कृत और रेतकोल (प्रीष्म), वहरा (वर्षा), हरूद (पतझड़), वन्दह फारसी से मिलकर बनी है ) बोली जाती है । बन्नू में (शीत), शिशिर ६ प्रकार की ऋतुयें होती हैं । काश्मीर दोगरी और पंजाबी बोली जाती है। इसके सिवा को वायु बड़ी शान्त है। काश्मीर के प्रदेश में लगभग बाल्ती, भुटिया और पहाड़ी भाषाओं का भी प्रयोग ४० इंच, जम्मू में ५७ इंच और सीमा पर के जिलों में होता है। ४ इंच सालाना वर्षा, होती है । राज्य के अन्दर श्रीनगर और जम्मू प्रधान नगर निवासी हैं। इसके सिवा सोपुर, बारामूला, अनन्त नाग, शूपियन, पामपुर, मुजफ्फराबाद, कोटलो, मीरपुर, डोगरा लोग छोटे कद के होते हैं किन्तु उनका रामपुर, राजौरी, भीमबेर, अखनूर, साम्बा, कथुश्रा, शरीर गठीला होता है। यह लोग बड़े बहादुर, स्वा- बसोहली, ऊधमपुर,रामनगर,रियासी, किश्तवार, पूँच, भिमानी और ईमानदार होते हैं। काश्मीरी लोग भद्रवाह श्रादि प्रसिद्ध नगर हैं । प्राचीन पार्यो के वंशज हैं। इनका रंग गोरा, शरीर सुदृढ़ और देखने में सुन्दर शरीर वाले होते हैं। यह काश्मीर प्रान्त की झीलें बड़ी प्रसिद्ध हैं इन लोग बड़े बुद्धिमान, दयावान, प्रेमी और परिश्रमी झीलों पर तैरती हुई बाटिकाएँ हैं । काश्मीर में नावों होते हैं। इसके सिवा लद्दाख के इधर उधर प्रान्तों के ऊपर या लकड़ी के लट्ठों के ऊपर मिट्टी डालकर में मंगोलियन जाति से मिलते जुलते लोग रहते हैं। उसी पर खेती होती है। इन बाटिकाओं में भांति भांति की तरकारियाँ और फल होते हैं। डाल, बुलर बम्ब जाति वारामूला मुज़फ्फराबाद के बीच में रहती है। और खाखास और हातमाल जातियाँ झेलम के अंचार, मानसवल, तानसर, हाकुसर, खुशालसर, बायें किनारे पर रहती हैं। पम्बसर आदि झोलें हैं। यहाँ दरियाँ और कालीने बड़ी सुन्दर बनाई ब्यापार तथा कला कौशल जाती हैं। अब भी ये वस्तुएँ अधिक संख्या में अम- जापानियों की भांति काश्मीरी भी अपनी रीका और योरुप जाती हैं। रेशम की दरियाँ और कला कौशल के लिए प्रसिद्ध हैं। यहां के शाल, दुशाले कालीने तो इतनी सुन्दर बनाई जाती हैं कि एक वर्ग और ऊनी कपड़े बहुत प्रसिद्ध हैं। यहाँ रेशम का इच में २००० सीवन या टोंके होते हैं । १९२९ की रोजगार भी होता है। रेशम के रोजगार में सात मन्दी के कारण और सस्ते दाम पर माँग होने के आठ हजार आदमी काम करते हैं और इससे राज्य कारण इस रोजगार को अवश्य ही कुछ धक्का पहुँचा। को एक खासी आय है । श्रीनगर और जम्मू में रेशम किन्तु महाराज काश्मीर ने इस कारखाने की सहायता के बड़े बड़े कारखाने हैं। सोने चांदी का काम और की जिससे इसको प्रोत्साहन मिला और खराब सामान बेल बूटों के काढ़ने का काम भी बहुत अच्छा होता न तयार होकर अब भी सुन्दर बहुमूल्य कालीनें और है । कालीने और दरियों भी बहुत सुन्दर बनाई जाती दरियाँ बनती हैं। इस कारखाने में १०,००० व्यक्ति हैं। इसके सिवा लकड़ो का काम भी बहुत अच्छा कार्य करते हैं। कागज से तस्तरो आदि बनाने का काम बनाया जाता है । राज्य में मेवों और फलों का रोज- (Papier mache) भी यहाँ का एक प्रधान रोज़- गार भी अच्छा होता है । इससे देहात के निवासियों गार है। यह काग़ज़ पर बनाया जाता है। जब भिन्न को अच्छा लाभ होता है। शाल-दुशाले, ऊन-रेशम भिन्न रंगों का काम तयार होता है तो बड़ा ही सुन्दर और रेशमी कपड़े, दरियाँ और कालीनें, मेवे, लकड़ी, होता है । इसकी चित्रकारी का कार्य चतुर कारीगर घी इत्यादि वस्तुयें वाहर भेजी जाती हैं। करते हैं जो बड़ी ही सुन्दर होती है । यहाँ प्रत्येक वर्ष