पृष्ठ:भूगोल.djvu/३२

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मैसूर राज्य हैदराबाद के दक्षिण में एक प्रधान देशी राज्य और दूसरी शुष्क वस्तुओं की उपज होती है । कृष्णा है। यह राज्य ११.३० से १५ उत्तरी अक्षाशों और कावेरी, तुगभद्रा, वेदवती आदि नदियां हैं। इनसे ७४.४० से ६८'३० पूर्वी देशान्तरों के बीच स्थित है। और इनकी सहायक छोटी छोटी नदियाँ तथा नहरों यह राज्य चारों ओर से ब्रिटिश राज्य से घिरा है। से जो इन्हीं नदियों से निकाली गई हैं सिंचाई का इस राज्य का प्रधान नगर बंगलौर है किन्तु राजधानी काम होता है। सभी पहाड़ी भूमि होने के कारण मैसूर नगर ही है। महाराजा दोनों स्थानों में क्रमशः यहाँ की नदियों में बड़ी बड़ी नावें नहीं चल सकती रहा करते हैं । प्राचीन काल से इसका नाम महिषासुर और इस प्रकार नदियों द्वारा व्यापार नहीं हो सकता। (भैंसे के सर वाला राक्षस ) नामक राक्षस के नाम तुगभद्रा और कव्वानी नदियों में लट्ठ बहाये जाते पर महेशुरु पड़ा, फिर बिगड़ कर मैसूर हो गया। हैं। राज्य में सभी भांति के छोटे बड़े ताल तलरियाँ राज्य का क्षेत्रफल वंगलौर की सिविल और हैं ये सारे राज्य में फैले हुये हैं। कुल ३७,३५२ हैं। फौजी छावनियों को मिलाकर २९,४६९ वर्गमील हैं। इनमें सबसे बड़ी सुलेकेरे की झोल ४० मील के घेरे राज्य में आठ जिले हैं-(१) बंगलौर, (२) कोलार, (३) तूमकूर, (४) मैसूर, (.) शिमोगा, (६) कदूर, तुगभद्रा की घाटी के समीप स्लेट और दूसरी (७) हसन, (८) चितलहग । जन-संख्या लगभग ६० प्रकार की मुलायम चट्टानें मिलती हैं । यहीं पर चूना लाख है। इसमें साढ़े तीन लाख सुसलमान और और बलुआ पत्थर की खाने हैं बंगलौर में लोहे को शेष हिन्दू हैं। खाने हैं जहाँ से लोहा निकाला जाता है। कोलार में मैसूर का राज्य एक ऐसे स्थान पर स्थित है प्रसिद्ध सोने की खानें हैं। जहाँ बिजलो द्वारा काम जहाँ पूर्वी घाट और पश्चिमी घाट नीलिगिरि पर्वत से होता है । यहां बिजली ९३ मील को दूरी से कावेरी के मिल जाते हैं। राज्य के भीतर ४,५०० से ५,००० फुट शिवसमुद्रम् झरने से प्राप्त की जाती तक ऊँचे पर्वत हैं। बीच बीच में ऊँचे ऊँचे दुर्ग हैं इतिहास जिनमें नन्दो दुर्ग, सवान दुर्ग, कवल दुर्ग आदि प्रसिद्ध मैसूर के प्राचीन इतिहास का ठीक ठीक पता हैं। इन पर्वतों पर प्राचीन काल में किले बने थे। नहीं चलता है । किन्तु राज्य में मिले हुये शिला लेख कवल दुर्ग में गज्य का कारागार था । और ताम्र के पत्रों ने राज्य के इतिहास पर काफी प्रकृति ने स्वयं मैसूर राज्य को दो भागों में बांट प्रकाश डाला है। महाभारत और रामायण में बतलाये दिया है । (१) मालनाद (२) मैदान । मालनाद, यह हुये बहुत से स्थान यहाँ पाये गये हैं। मैसूर राज्य एक पहाड़ी प्रदेश है और पश्चिमी घाट पर स्थित है। प्राचीन काल में सुग्रीव का राज्य था। हनूमान जी मदान, यह खुला हुअा प्रदेश है। इसमें नदियों की रामचन्द्र जी को यहीं मिले थे और उन्होंने सुग्रीव को घाटियाँ और उपजाऊ प्रदेश स्थित हैं। मालनाद का रामचन्द्र जी से यहीं मिलाया था। रामचन्द्र जी की पहाड़ी प्रदेश अपने पर्वतोय दृश्य और सुन्दरता के बानर व भालू सेना यहीं की थी। उसके बहुत काल लिये प्रसिद्ध है । मैदान के उत्तर की ओर काली मिट्टी पोछे ईसा से २०० साल पहले बौद्ध यहाँ आये। फिर है जहाँ बाजरा, गेहूँ और कपास की उपज होती है। यहाँ जैन मत का प्रचार हुआ। अब भी जैन धर्म के दक्षिणी-पश्चिमी भाग जहाँ नहरों द्वारा सिंचाई होती बहुत से सुन्दर मन्दिर राज्य में हैं। है वहाँ ईख और धान की उपज बहुत होती है। जिन ऐतिहासिक काल के प्रारम्भ में मैसूर के उत्तरी जिन स्थानों में सिंचाई तालाबों से होती है वहाँ बगीचे भाग में कदम्ब वेश का राज्य था जिनकी राजधानी हैं और मुख्य उपज नारियल और Areca palm वनवासी थी। इस बंश ने पन्द्रहवीं सदी तक राज्य की है। लाल भूमि वाले पठारी प्रदेशों में रागी किया, फिर चालोक्य वंश ने इन्हें निकाल बाहर !