पृष्ठ:भूगोल.djvu/३८

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1 अङ्क १-४] राजपूताना पर राजमहल हैं। उत्तर-पश्चिम की ओर महलों से मिली पिचोला झील है। इस झील के बीच में दो महल बने हुये हैं। कुछ उत्तर को ओर चलकर फतेह सागर है यह सागर एक छोटो नहर द्वारा पिचोला झील से मिला हुआ है । बम्बई से।६९७ मील उत्तर उदयपुर-चित्तौरगढ़ रेलवे के आखिरी सिरे पर उदयपुर नगर है। म्हायर, भील और भीन जातियाँ यहाँ की प्राचीन जातियाँ हैं। भील जाति पहाड़ों पर रहती है और एक एक भील के पास कई कई मकान होते हैं जिन में से प्रत्येक एक पहाड़ी टीले पर होता है। इनके घेरों को पाल कहते हैं जो कई वर्गमोल में होता है । यहाँ की जलवायु स्वास्थ्यदायक है, गर्म जलवायु होते हुए भी कभी भी असहाय गर्मी नहीं पड़ती। मालभर में लगभग २४ इञ्च वर्षा होती है। यहाँ की पैदावार अगहन में ज्वार, बाजरा, तिल, कपास इत्यादि हैं और बैसाख में गेहूँ, जौ, चना, ईख, अफीम, तम्बाकू इत्यादि पैदा होते हैं । संक्षिप्त इतिहास भारतवर्ष राजपूतों में उदयपुर का घराना मव से उत्तम माना जाता है। उदयपुर के गजे सूर्य वंश के प्रथम शाख से हैं। और हिन्दू जाति यह मानती है कि यह लोग गम चन्द्र भगवान के वंशज हैं । कनक सन सूर्यवंशी ने १५४ ई० में उदयपुर की नींव डाली । भारतवर्ष में उदयपुर का घराना ही एक ऐसा घराना है जिसने बहुत समय तक यवनों का सामना डट कर किया और कभी भी अपने घराने की पुत्री यवनों को नहीं दिया । १२०१ ई० में गहुप चित्तौड़ का राजा हुश्रा उसने अपने जाति का नाम गिहलौट से बदल कर सिसोदिया रक्खा और राजकुमारों का नाम रावल स बदल कर राना रक्खा। १२९० के समीप अला- उद्दीन ने चित्तौड़ का घेरा डाला और ५३०३ में छीन लिया किन्तु कुछ ही समय बाद महाराना हमीर ने फिर चित्तौड़ वापस ले लिया। महाराना हमीर के मारवाड़, जैपुर, बंदी, ग्वालियर आदि राज्य उदयपुर के अधिकार में थे। हमीर के बाद लगभग १५० साल तक मेवाड़ उन्नति पर रहा और अच्छी समय चित्तौड़गढ़ का विजय स्तम्भ