पृष्ठ:भूगोल.djvu/७९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

७८ रीवा राज्य [वर्ष १६ खरीद लिया। इब्राहीम सूर ने रामचन्द्र पर आक्रमण किया, बहादुरशाह की आज्ञा से हृदयशाह भगा दिया गया; पर मैहर युद्ध में सूर कैद कर लिया गया, पर महाराज ने उसका कोई का इलाका राज्य से अलग हो गया। अपमान नहीं किया। गाजीखाँ तातारी पर अकबर रुष्ट हो महाराज अजीतसिंह ( १८१२-६६ वि० ) के समय में गया और वह भाग कर रामचन्द्र की शरण में आया । शाहज़ादा अलीगौहर ( शाह आलम ) जब लार्डलाइव के इससे रामचन्द्र पर भी रुष्ट होकर अकबर ने बान्धवगढ़ में घेरा डर से पटना की ओर से भागा तब अपनी बेगम लालबाई को डलवा दिया। कालंजर का किला महाराज रामचन्द्र ने अकबर रीवा-नरेश की शरण में छोड़ कर आप बक्सर की ओर को दे दिया इस से प्रसन्न हो कर बादशाह ने इन्हें अरैल गया। यहीं बेगम के पुत्र पैदा हुआ जो पीछे छोटे अकबर (प्रयाग के दक्षिण) का इलाका दिया । के नाम से बादशाह हुआ। बाँदा के नवाब अलीबहादुर महाराज विक्रमादित्य की नाबालिगी में अकबर का सेनापति यशवन्तराव नायक दस हजार सेना ले कर बान्धवगढ़ पर अपना अधिकार करके उन्हें अपने पास बुला रीवा पर एकाएक चढ़ आया, पर रीवा के बहुत थोड़े ( केवल लिया । वयस्क होने पर इन्हीं ने रीवा में अपनी राजधानी २ सौ ) बहादुर सरदारों ने उसकी सेना को मार भगाया। बनायी । महाराज अनूपसिंह ( १६६७-१७१७ वि० ) की महाराज जयसिंह देव ( १८६६-६० वि० ) के समय में नाबालिगी में बुन्देलखण्ड के ओछी के राजा पहाड़ सिंह ने कम्पनी-सरकार से बराबरी की सन्धि हुई। महाराज रघुराजसिंह पुराना बदला लेने के लिये रीवा पर चढ़ाई किया। और (१९११-३७ वि० ) को गदर में अँगरेजी सरकार की सहा- राजपरिवार को किला छोड़ देना पड़ा। महाराज भावसिंह यता करने के कारण सोहागपुर और अमरकण्टक के परगने (१७१७-४७ वि०) के समय में राज्य के सोहागपुर और वापस मिले। महाराज वेंकटरमणसिंह ( १९३७-७५ वि० ) अमरकण्टक के परगने नागपुर के भोंसलों के अधिकार में राज्याधिकार पाते ही राज्य की अदालतों की भाषा उर्दू चले गये । महाराज अवधूत सिंह ( १७५७-१८१२ वि०) के और लिपि फारसी उठा कर हिन्दी और नागरी कर दिया । समय में पन्ना के राजा हृदयशाह ने रीवा पर अधिकार कर अब महाराज गुलाबसिंह के वर्तमान समय में गति से लिया। राज-माता के आवेदन पर तत्कालीन दिल्लीपति समय परिवर्तित हो रहा है।