पृष्ठ:भूतनाथ.djvu/१४०

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Na दूसरा भाग - 7 7 इतना कह कर गुलाबसिंह-घोडे पर सवार हो गया । "जो-हुक्म" कह कर एक सिपाही तो,पोछे की तरफ लौट गया और दूसरा घोहे पर सवार होकर गुलाबसिंह के साथ रवाना हुआ। पांचवां बयान ऊपर लिखी वारदात को गुजरे आज कई दिन हो चुके, ह इस बीच मे कहीं और क्या क्या नई बातें पैदा हुई उनका हाल तो पीछे मालूम होगा, इस समय हम पाठकों को कला और विमला की उसी सुन्दर घाटी में ले चलते हैं जिसकी सैर वे पहिले भी कई दफे कर चुके हैं। उस घाटा के वोचोबीच में जो सुन्दर वंगला है उसी में चलिए और देखिए कि क्या हो रहा है। रात घण्टे भर से कुछ ज्यादे जा चुकी है, बंगले के अन्दर एक कमरे में साफ और मुथरा फर्श विछा हुमा, है और उस पर कुछ आदमी बैठे श्रापुस मे बातें कर रहे हैं । एक तो इन्द्रदेव है,दूसरी फला, तीसरी विमला पौर चौथो इन्दुमति है, जिसका नाम प्राज. कल 'चन्दा' रक्खा, गया है। सैर सुनिये कि इनमें घया क्या बात हो रही हैं। यिमला०।(इन्द्रदेव से प्रापका कहना बहुत ठोक है, मै भो भूतनाथ से इस तरह पर बदला लेना पसन्द करती हू, तभी तो उसे यहाँ से निकल जाने का मौका दिया नहीं तो यहाँ पर उसको मार डालना कोई कठिन काम न.पा । इन्द्र० । ठोक है, किसी दुश्मन को मार डालने से मेरो, तबीयत तो प्रसन्न नहीं होती । मैं ममझता हूँ कि मरने वाले को कई सायत तक की मामूली तकलीफ तो होती है मगर मरने के बाद उसे कुछ भी ज्ञान नहीं रहता कि उसने किसके साथ कैसा सलक किया था और उसने किस तरह पर उमसे बदला लिया। प्राण का सम्बन्ध शरीर से नहीं छूटता, उसे कोई न कोई शरीर पवश्य ही धारण करना पड़ता है। एक शरीर को छोड़ा तो दूसरा धारण करना पड़ा । यह उसकी इच्छानुसार नहीं होता बल्कि सर्व- -- 1 १ -