पृष्ठ:भूतनाथ.djvu/१५८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

दूसरा भाग - करने लगा, मगर साधू महाशय को कृपा से खजाना मिलने का हाल उसने तन लोगो से नहीं कहा। सातवां ध्यान जमानिया वाला दलीपशाह का मकान बहुत ही सुन्दर और प्रमोराना ढंग पर गुजारा करने लायक बना हुआ है। उसमें जनाना और मर्दाना किता इस ढग से बनाया गया है कि भीतर से दर्वाजा खोल कर जब वाहे एक कर लें और अगर भोतरी रास्ता बन्द कर दिया जाय तो एक का दूसरे कुछ भी उम्बन्ध न मालूम पडे, यहाँ तक कि अगर मदाने मकान में कोई मेहमान श्राफर टिके तो उसे यकायक उस बात का पता भी न लगे कि जनाने लोग कहा रहने है पोर उस तरफ पाने जाने के लिए इस तरफ से कोई रास्ता भी है या नहीं। इस मकान के सामने एक छोटा सा सुन्दर नगरवाग बना हुअा था घोर उसके नामने प्रति पूरव तरफ ऊंची दीवार और फाटक था। मकान कोपाई तरफ लम्मा सपन पा रिणका एक सिरा तो मकान के साथ सटा हुगा पा और दूसरा सिरा सामने प्रति फाटक बाली दीवार के माय । उसने सोच में छोटे बडे वाई दालान पोर कोठरिया बनी हुई थी जिनमें दलाप- शाह को गिदमतगार और सिपाही लोग रहा करते थे । इमो तरह मकान के पहिनी तरफ इस निरे से लेफर उस सिरे तक कुछ ऐमो इमारतें बनी हु, घी जिनमें पाई गृहस्पियों का गुनारा हो गयाना था और उनमें दलीप. शाह के शागिर्द ऐयार लोग रहा करते थे । इस टग पर वह नजरवाग बोच में पर्यात् पागे तरफ से घिरा हुआ था। सरसरी तौर पर ग्वयाल करने मे भो साफ मालूम होता था कि दलोपगाह बहुत ही प्रमोगना लंग पर रह कर जिन्दगी के दिन बिता रहा है। इस इमारत के बगल ही में दलीपगाह का एक बहुत बहा सुला हुमा वाग पा जिसमें बडे बडे प्राम नोवू पोर अमरुद तया इनी तरह के पोर भी बहुत विस्म के दरस्त लगे हुए थे।