पृष्ठ:भूतनाथ.djvu/१९५

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भूतनाथ 1 आपने जिक्र किया है, जिन्होने आपको खजाना दिया था, वह कला और बिमला के पक्षपाती है। जो रग ढग आपने उनके प्रभो बयान किये है ठीक उसी सूरत शक्ल में मैंने उन्हें वही देखा और यह कहते अपने कानो से सुना था कि- 'भूतनाथ को मैंने खूब ही लालच में फसा लिया है, मब वह इस घाटी को कदापि न छोडेगा और प्रभाकरसिंह को भी इसी जगह ले प्रावेगा, तब हम लोग उन्हें सहन हो में छुड़ा लेंगे। इसके अतिरिक्त मुझे यह भो निश्चय हो गया कि वह साधू प्रपनो अस ना सूरत मे नहीं है बल्कि कोई ऐयार है, मेरे सामने ही उसने बिमला से कहा था कि 'मव में इसो सूरत में आया करूगा।' भूत । वेशक वह कोई ऐयार था, मगर प्रफियां किस तरह निकल गई इसका भी पता कुछ लगा? राम० । प विषय में तो मैं कुछ भी नहीं कह सकता । भूत० ० । खैर इस बारे में फिर सोचेंगे, अच्छा और क्या देखा सुना ? राम० । और यह मालूम हुमा कि गुलाबसिंह आपकी शिकायत लेकर दलीपशाह के पास गये थे और दलीपशाह को साथ लिए हुए कला और विमना के पास पाये थे, उस समय भो उस वुड्ढे साधु को मैंने उन दोनों के साथ देखा था। भूतका खैर तो अब मालूम हुआ कि दलीपशाह के सिर में भी खुजला- हट होने लगी। रामदास । बात तो ऐसो ही है, पापका वगली दुश्मन ठीक नही, उससे होशियार रहना चाहिये । भूत० । वेशक वह बडा ही दुष्ट है, पाश्चर्य नहीं कि वही भोलासिंह बन कर मेरे पास आया हो । रामदास । हो सकता है वही माया हो । भून० । खैर उससे समझ लिया जायगा । अच्छा यह वतामो कि कुछ इन्द्रदेव का हाल भी तुम्हें मालूम हुना या नहीं ? मुझे शक होता है कि इन्द्र- देव उन दोनो की मदद पर है, ताज्जुब नहीं कि वहाँ वे भो जाते हो।