पृष्ठ:भूतनाथ.djvu/२४६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

तीसरा हिस्सा ३ N करना, फोई जान पहिचान का देख लेगा और जा कर कह देगा तो मुफ्त की झाड * नुननी पडेगी ! दूसरा० । परे रहो बाबू साहब, हम लोगन के साथ पाया करो तो ऐसी भलमनसी घर छोट पाया करो, हम लोग ऐसा दवा करें तो दिन दुपहरिए लुट जर्जाय ! लेसका० । रुगाल वांकडे भो सूब ही लुटा करते होंगे। सातवा० । (सुलगती हुई टिकिया हाथ में हिलाते हुए) अरे यारो ये वाबू साहव ठहरे महाजन प्रादमी, मला ई लोग लटना भिटना का (क्या) जानें, चाहे कोई धोती हो उतार के ले जाय । ई (यह) हम ही सोगन (लोगो) क काम हो कि कोई प्रान दिसावे तो कान उपार (उखाड) लेई । हमी लोगन की बदौलत बाबू साहव वचत भी जात-है, नही तो गूदट सफरदा सरवा ऐमा रग बाधे लगा था कि बम कुछ पूछो नहीं, घो रोज (उस दिन) चिघड न होते तो गले को सिफरिये उतार लिए होता । घा० । (अर्थात् वाबू साहब) हा यह बात तो ठीक है और जी मे तो उसी रोज पा गया था कि अब माज से इस रास्ते को छोड़ दें और राजी मुगदी का नाम भी न लें बल्कि कसम साने के लिए भी तैयार हो गया था मगर क्या करें 'नागर' की मुहब्बत ने ऐसा करने नहीं दिया, यह वेशक मुझे प्यार करती है और मुझ पर पाशिक है । नातयां० । (मुस्कुराते हुए) वल्लि तुम पर मरतो है ! एक दिन हमने कहती थी कि नाव साहव हगे छोर देंगे तो हम जहर सा लेंगे !! इसी तरह ये लोग बेतुको और प्रकपरपन लिये हुए मिश्रित भाषा में यातचीत पर रहे थे कि यवायक विचिन रंग का एक नया मसाफिर यहा घा पहुंचा और उसने फूएं के पर चरते हुए इन सातवे पादमी की बात चमो सुन लो ।म प्रादमी को उसका पता लगाना जरा बाटिन है, तथापि चाइ गाहय गी निगाहो में वह पतीरा दर्प का मालूम पडता का। पद + वर प्रांत बाट ।