पृष्ठ:भूतनाथ.djvu/२५

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भूतनाथ २६

उदास और पति की जुदाई से व्याकुल इन्दुमति गुलावसिंह के पास से उठी और धीरे धीरे चल कर नीचे वाले सरसन्ज मैदान में पहुंच कर टहलने लगी। उधर गुलाबसिंह भो दिन भर का भूखा प्यासा जरूरी कामो से निपटने और कुछ खाने पीने की फिक्र मे लगा।

घोरे धीरे घूमती फिरती इन्दुमति उस सुरग के मुहाने के पास मा पहुंची जो यहा पाने का रास्ता था और पहाडी के साथ एक पत्थर की साफ चट्टान पर बैठ कर सोचने लगी कि अब क्या करना चाहिए। उसका मुह सुरग की तरफ था और इस प्राशा से यह वरावर उसी तरफ देख रही थी कि प्रभाकरसिंह को लिए हुए भूतनाथ अब आता ही होगा। उसी समय नकली प्रभाकरसिंह को लिए हुए भोलासिंह वहा आ पहुंचा और सुरग के बाहर निकलते ही इदु की निगाह उन पर पडी तथा उन दोनो ने भी इन्दु को देखा। इस समय भोलासिंह अपनी असली सूरत में था और उसे भूतनाथ के साथ जाते हुए इन्दु ने देखा भी था इसलिए वह जानती थी कि वह भूतनाथ का ऐयार है अस्तु निगाह पडते ही उसे विश्वास हो गया कि भूतनाथ ने मेरे पति को भोलासिंह के साथ यहा भेज दिया है और पीछे पीछे वह (भूतनाय) सुद भी आता होगा।

नकली प्रभाकरसिंह और भोलासिंह सुरग से निकल कर पाच कदम मागे न वढे होगे कि प्रभाकरसिंह को देखते ही इन्दुमति पागलो को तरह दौडती हुई उनके पहुंची और उनके पैरो पर गिर पड़ी।

हाय । बेचारी इन्दु को क्या खवर थी कि यह वास्तव में मेरा पति नही है बल्कि कोई मस्कार उनकी सूरत वना मुझ धोखा देने के लिए यहा आया है । तिस पर भोलासिंह के साथ रहने से उसे इस बात पर शक करने का मौका भी न मिला । वह उसे अपना पति ही समझ कर उसके पैरो पर गिर पड़ी पौर वियोग के दुख को दूर करती हुई प्रसन्नता ने उसे गदगद् कर दिया । कएठ रुद्ध हो जाने के कारण वह कुछ बोल न सको, केवल गरम