पृष्ठ:भूतनाथ.djvu/२५७

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तनाथ - शक अापने और भी बहुत सी वातें सुनी होंगी, और यह भी मालूम किया होगा कि वे औरतें वास्तव में कोन थी। वावू साहब० । सो मैं कुछ मो न जान सका कि वे औरतें कौन थी मा वहा पहुँचने से उन लोगो का क्या मतलव था। गदाधर० । खैर मैं थोडी देर के लिए आपकी बातें मान लेता नागर० । (वावू साहव से) मगर मैंने तो सुना था कि आपका और उन लोगो का सामना हो गया था और आप उसी समय उनके साथ कही चले भी गए थे । बाबू साहब० । (घबडाने से होकर) नही नहीं, मेरा उनका सामना बिल्कुल नहीं हुप्रा बल्कि मैं उन लोगो को उसी जगह छोड कर छिपता हुमा किसी तरह निकल भागा और अपने घर चला पाया क्योकि मुझे उन लोगो की बातो से कोई सम्बन्ध नही था, फिर मुझे जरूरत हो क्या थी कि छिप कर उन लोगो की बात सुनता या उन लोगो के साथ कही जाता। नागर० । शायद ऐसा ही हो मगर जिमने मुझे यह खबर दी थी उसे झूठ बोलने को प्रादत नही है । वाबू साहब । तो उसने धोखा खाया होगा अथवा किसी दूसरे को मौके पर देखा होगा। नागर ने इस मौके पर जो कुछ बाबू साहब से कहा वह केवल धोखा देने की नीयत से था और वह चाहती थी कि वातों के हेर फेर में डाल कर वाबू साहब से कुछ और पता लगा ले, प्रस्तु जो कुछ हो मगर इम खवर ने भूतनाथ को बहुत ही परेशान कर दिया और वह सर नीचा कर तरह तरह की बातें सोचने लगा। उसे इस बात का निश्चय हो गया कि वावू साहब ने जो कुछ कहा है वह बहुत कम है अथवा जान बूझ कर वे असल बातो को छिपा रहे हैं। कुछ देर तक सिर झुका कर सोचते सोचते भूतनाथ को क्रोध चढ़ाया और उसने कुछ तीखी प्रावाज में बाबू साहब से कहा-