पृष्ठ:भूतनाथ.djvu/२६०

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तीसरा हिस्सा १७ लिया हो तो मै नहीं कह सकती। भूत ० । सैर देखा जायगा, मेरा द्रोही मुझसे वच के कहां जा सकता है, फिर भी प्राज में जिस नियत से तुम्हारे पास प्राया था वह न हो सका, अच्छा प्रब में जाता है। नागर० । नही नही, मैं तुम्हें इस समय जाने न दूगो, मुझे बहुत सो बातें तुमसे पूछनी पौर व हनी है। मुझे इस वात का दिन रात खुटका यना रहता है कि कही तुम अपने दुश्मनो के फेर में न पड जायौ क्योकि केवल तुम्हारे ही तक मेरो जिन्दगी है, मुझे सिवाय तुम्हारे इस दुनिया में और किसी का भी भरोसा नहीं है, और तुम्हारे दुश्मनो को गिनती दिन पर दिन वढती ही जाती है। भूत० । हाँ ठीक है । (कुछ सोच कर) मगर इस समय में यहाँ नहीं रह सकता और नागर० । कल मनोरमाजी भी तो तुमसे मिलने के तिए यहाँ त्राने वाली है। भूत० । सैर देखा जायगा, बन पडेगा तो कल नै फिर आ जाऊगा। इतना कह कर भूतनाथ उठ खडा हुना और सीढियो के नीचे उतर कर देसते देखते नजरो से गायब हो गया। भूतनाथ के चले जाने के दाद नागर आधे घंटे तक चुपचाप बैठी रही, इसके बाद उसने रठ कर अपनी लौडियो को बुलाया और कुछ बातचीत करने के बाद एक लीजे को माघ लिए हुए सीढियो के नीचे उतरी। चन्द्रकान्ता सन्तति में नागर के जिस मकान का हाल हम लिख पाये है वह मकान इस समय नागर के कब्जे में नहीं है क्योकि अभी तक जमानिया राज्य की वह हालत नहीं हुई थी और न उस इज्जत को अभी नागर पहुंची थी। इस समय नागर रण्डियो जी मी अवस्था में है और उसके कब्जे में एक मामूनो छोटा सा मकान है, फिर भी मकान सुन्दर प्रौर मजबूत है तगा उसके सामने एक छोटा सा नजरवाग भी है। यद्यपि अभी भू०३-२