पृष्ठ:भूतनाथ.djvu/२६९

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- . २६ भूतनाथ कात होने के पहले ही से ये दोनो बिगडी हुई है और दो आदमियो से अनुचित प्रेम करके अपने धर्म को विगाड चुकी है, बल्कि बड़े अफसोस की वात है कि इन्दुमति को भी उन्होने अपनी पक्ति में मिला लिया है । ईश्वर ने इसी पाप का फल उन्हे दिया है, मेरी तरह वे भी इ . तिलिस्म में कैद कर दी गई है और पाश्चर्य नही कि वे भी इसी तरह की तकलीफें उठा रहो हो । वस इससे ज्यादे और मैं कुछ भी नहीं कहूगी क्योकि. प्रभाकर० । नही नही, रुक मत, जो कुछ तू जानती है वेशक कहे जा, मै खुशी से सुनने के लिए तैयार है। हरदेई ० ! अगर मैं ऐसा करूगी तो फिर मेरी क्या दशा होगो यही मैं सोच रही है। हरदेई को बातो ने प्रभाकरसिंह के दिल मे एक तरह का दर्द पैदा कर दिया। 'कला और विमला वदकार है और उन्हीने इन्दु को भी खराव कर दिया ।' यह सुन कर उनका क्या हाल हुआ सो वे ही जानते होगे । नेक और पतिव्रता इन्दु को कोई बदनामी करे यह वात प्रभाकरसिंह के दिल में नही जम सकती थी मगर कला और विमला पर उन्हें पहले भी एक दफे शक हो चुका था । जव वे उस पारी मे ये तभी उनको स्वतन्त्रता देख कर उनका मन पाशक्ति हो गया था मगर जाँच करने पर उनका दिल साफ हो गया था । अाज हरदेई ने उन्हें फिर उसो चिन्ता में डाल दिया और साथ हो इसके इन्दु का भी प्रांचल गदला सुन कर उनका कलेजा कॉप उठा और वे मोचने लगे कि क्या यह बात सब हो सकती है ? केवल इतना ही नही, प्रभाकरसिंह के चित्त मे चिन्ता और वृणा के नाय ही साथ क्रोध की भी उत्पत्ति हो गई और बहुत कुछ विचार करने के बाद उन्होने सोचा कि यदि वास्तव में हरदेई का कहना सच है तो मुझे फिर उन दृष्टानो के लिये परिश्रम करने को आवश्यकता हो क्या है, परन्नु नत्य असत्य की जाच तो प्रावश्यक है इत्यादि सोचते हुए फिर उन्होंने हरदेई में पूछा-