पृष्ठ:भूतनाथ.djvu/२८०

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तीसरा हिस्सा ? या जरुमो हुई ? ताज्जुब नहो कि वही हरदेई को गिरफ्तार भी कर ले गया हो ? परन्तु यहा दूसरे प्रादमा का पाना बिल्कुल हो असम्भव है ? हा हो सकता है कि कला विमला और इन्दु यहा ना पहुँची हो और उन्होने हरदेई को दुश्मन समझ के उसका काम तमाम कर दिया हो ? ईश्वर ही जाने यह क्या मामला है पर वह तिलिस्मी किताव मेरे कब्जे से निकल गई यह बहुत ही बुरा हुमा इत्यादि बातें सोचते हुए प्रभाकरसिंह बहुत ही परेशान हो गये। वे और भी घूम फिर कर हरदेई के विषय मे कुछ पता लगाने का उद्योग करते परन्तु रात की अन्धेरो घिर ग्नाने के कारण कुछ भी न कर सके। साथ ही इसके सर्दी भी मालूम होने लगी और पाराम करने के लिए वे प्राड की जगह तलाश करने लगे। प्राज की रात प्रभाकरसिंह ने उसी वाग के वीच वाले बंगले में बिताई और तरह तरह की चिन्ता में रात भर जागते रहे । तिलिस्मी किताब के चले जाने का दु ख तो उन्हें था ही परन्तु इस बात का खयाल उन्हें बहुत ज्यादे था कि अगर वह किताव किसी दुश्मन के हाथ में पड गई होगी तो वह इस तिलिस्म में पहुँच कर बहुत कुछ नुकसान पहुंचा सकेगा और यहा की बहुत सी अनमोल चीजें भी ले जायगा। यद्यपि वह किताव इस तिलिस्म की चाभी न थी और न उसमें यहा का पूरा पूरा हाल ही लिखा हुआ था तथापि वह यहा के मुख्तसर हाल का गुटका जरूर घी और उसमें को बहुत सी बातें इन्द्रदेव ने जरूरी समझ कर नोट करा दी थी। प्रभाकरसिंह उसे कई दफे पढ़ चुके थे परन्तु फिर भी उसको पढने को जरूरल थी। इस समय अपनी भूल से वे शर्मिन्दा हो रहे थे पौर सोचते थे कि इस विषय में इन्द्रदेव के सामने मुझे वेवकूफ बनना पड़ेगा। ज्यों त्यो करके रात बीत गई । सवेरा होते ही प्रभाकरसिंह बंगले के वाहर निकले । मामूली कामों से छुट्टी पाकर चश्मे के जल से स्नान किया. और सन्च्या पूजा करके पुन, बंगले के अन्दर धुन गये। कई कोठरियों में