पृष्ठ:भूतनाथ.djvu/२९४

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तीसरा हिस्सा साथ लिए हुए खोह के अन्दर चला गया। इस समय रात घण्टे भर से कुछ ज्यादे जा चुकी थी? पांचवां बयान दूसरी पहाडी पर चढ कर ऊपर ही फार जमना सरस्वती श्रीर इन्दु- मति के पास पहुचने में जल्दी करने पर भी प्रभाकरसिंह को प्राधे घटे से ज्यादा देर लग गई । "क्या इतनी देर तक दुश्मन ठहर सकता है ? क्या इतनी देर तक ये जुना नीरतें ऐसे भयानक दुश्मन के हाथ से अपने को बचा सकती है ? क्या इस निर्जन स्थान में कोई उन औरतो का मददगार पहुच सकता है ? , नही ऐसी वात तो नहीं हो सकती ।" यही सब कुछ सोचते हुए प्रभाकरसिंह वडी तेजी के साथ रास्ता तै करके वहा पहुचे जहा जमना सरस्वती और इन्दुमति को छोड गये थे। उन्हें यह प्राशा न थी कि उन तीनो से मुलाकात होगी, मगर नही, ई.वर वा ही कारसाज है, उसने इस निर्जन स्थान मे भी उन औरतो के लिए एक बहुत बडा मदद. गार भेज दिया जिसकी बदौलत प्रभाकरसिंह के पहुंचने तक वे दोनो दुश्मन के हाथ से बची रह गई । प्रभाकरसिंह ने वहा पहुँन कर देखा कि जमना सरस्वती और इन्दुमति दुरमन के खौफ से बदहवास होकर मैदान की तरफ भागो जा रही है और एक नौजवान बहादुर प्रादमी जिसके चेहरे पर नकाब पड़ी हुई है तलवार से उस दुश्मन का मुकाबिना कर रहा है जो उन तीनो औरतो को मारने के लिए वहा माया या । यह तमाशा देख प्रभाकरनिह तरतुद में पड़ गये और सोचने लगे कि हम उन भागती हुई औरतो को टाटम देकर लोटा लावें या पहिले हम बहादुर की मदद करें जो इस समय हमारे दुश्मन का मुकाविला वडी बहादुरी पो ना कर रहा है। उन दोनो बहादुरी की प्रनत लटाई देश कर प्रभाकरीसह अनन्न हो गये । बोडो देर के लिए उनके दिल से तमाम गुलरुन जाती रही और वे एक्टक उन दोनो की राडाई का नमाशा देखने लगे। वह शैतान जो जमना इत्यादि को मारने पापा था यद्यपि यहादुर