पृष्ठ:भूतनाथ.djvu/३०३

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वस - भूतना तुम्हारे विचार से मैं वेकसूर समझी जाऊ तो यही प्रार्थना है कि तुम मेरे लिए कदापि दुखित न होना, इस पत्र को पढ कर प्रभाकरसिंह बहुत बेचैन हुए । मालूम होता था कि किसी ने अन्दर घुस और हाथ से पकड के उनका कलेजा ऐ ठ दिया है। यद्यपि उन्होने इन्दुमति का तिरस्कार कर दिया था परन्तु इस समय उनके दिल ने गवाही दे दी कि 'हाय, तूने व्यर्थ इन्दुमति को त्याग दिया? वह वास्तव में निर्दोप थी इसी कारण तेरे उन शब्दो को वर्दाश्त न कर सकी जो उसके सतीत्व में धब्बा लगाने के लिये तूने कहे थे। हाय इन्दे ? अव मुझे मालूम हो गया कि तू वास्तव में निर्दोष थी, भाज नहीं तो कल इस बात का पता लग ही जायगा।' इतना कह कर प्रभाकरसिंह ने पुन उस चिता की तरफ देखा और कुछ सोचने के बाद गरम गरम भासू बहाते हुए वहां से रवाना हुए मगर उनकी भृकुटी, उनके फडकते हुए होठ और उनकी लाल लाल आँखो से जाना जाता है कि इस समय किमो से बदला लेने का ध्यान उनके दिल मे जोश मार रहा है । उस दीवार के बाहर हो जाने वाद प्रभाकरसिंह को यकायक यह खयाल पैदा हुआ कि इन्दुमति का हाल तो जो कुछ हुना मालूम हो गया, परन्तु जमना और सरस्वती के विषय में कुछ मालूम न हुमा, सम्भव है कि वहा उन लोगो ने भी इसी तरह कुछ लिख कर रख दिया हो जिसके देखने से उन लोगो का कुछ हाल मालूम हो जाय । यदि उन लोगो से मुलाकात हो गई तो उनकी जुवानी इन्दुमति की अन्तिम अवस्था का ठीक ठीक हाल मालूम हो जायगा । यह सोच कर प्रभाकरसिंह पुन पलट पडे और उस चिता के पास जाकर उधर उधर देखने लगे परन्तु और किसी बात का पता न लगा, लाचार प्रभाकरसिंह लोट कर उस दीवार के बाहर निकल आये। अव दिन घण्टे भर से ज्यादे चढ चुका था। दीवार के बाहर निकल कर प्रभाकरसिंह कुछ सोचने लगे पोर इधर उधर देखने के बाद कुछ सोच कर एक पेड के ऊपर चढ गये और दूर तक निगाह दौडा कर देखने लगे। -