पृष्ठ:भूतनाथ.djvu/३१६

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तीसरा हिस्सा (परिन्दा) थे वे भी ऊपर वाले हंसो की तरह अपनी क्रोध वाली अवस्था दिखाते हुए पर फैला फैला कर इस तरह मुझ पर झपट पडे मानो ये सव वात की बात में नोच कर खा जायगे । केवल इतना ही नहीं वह औरत भी उठ कर बैठ गई और गर्दन ऊची करके क्रोध भरी नांखों से मेरी तरफ देखने लगी। वह दृश्य बडा ही भयकर था, जानवरो के वेतरह झपट पड़ने से में कदापि न डरता यदि वे वास्तव में सच्चे होते और मैं उन्हें अपने खञ्जर से काट सकता, परन्तु मैं तो अच्छी तरह जाच कर समझ चुका था कि वे सव असली नही है फिर भी जब उन्होने हमला क्यिा तब मैंने अपने खजर से उन्हें रोकना चाहा, परन्तु खजर ने भी उनके बदन पर कुछ असर न ‘किया मानो उनका बदन फौलाद का बना हुआ हो । ऐसी अवस्था मे उन सभी का एक साथ मिल कर हमला करना मुझे जरूर मुकसान पहुंचा 'सकता था अस्तु आश्चर्य के साथ ही साथ भय ने भी मुझ पर अपना असर जमा लिया। इसके अतिरिक्त उस औरत का एक अजीब ढंग से मेरी तरफ देखना और भी घबराहट पैदा करने लगा। पहिले तो मैंने चाहा कि जिस तरह हो सके इस वावली के बाहर निकल जाऊं मगर ऐसा न हो सका, लावार पीछे की तरफ हट कर मैं पौर भी दो सोढी नीचे उतर गया मगर वहाँ भी ठहरने की हिम्मत न पड़ी क्योकि उन जानवरो का हमला और भी तेज हो गया तथा वह औरत भी इस जोर से चिल्ला उठी कि मै घबडा गया तथा और भी कई सीढी नीचे उतर कर उस औरत के पास जा पहुँचा । वस उसी समय औरत ने मेरा पैर पकड लिया और एक ऐसा झटका दिया कि मैं जल के अन्दर जा पड़ा और बेहोश हो गया। इसके बाद क्या हमा इसकी मुझे कुछ भी पवर नहीं है। छोटी छोटी चार पहाडियों के अन्दर एक खुशनुमा वाग है । इसमें गुन्दर सुन्दर बहुत नो पारिया धनी हुई हैं, हर तरफ छोटी छोटी नहरें जारी हैं और पेड़ों के ऊपर बैठ कर बोलने वालो तरह तरह की चिड़ि-