पृष्ठ:भूतनाथ.djvu/३३३

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? ही है कि शहर के आस पास ही में कोई कुमेटी है जिसके स्थान का और सभासदो का कुछ भी पता नहीं लगता। गदाधर० । हाँ मैं सुन चुका हूँ, (मुस्कुरा कर) मगर मेरा तो खयाल है कि प्राप भी उस कुमेटी के मेम्बर है। दारो० । हरे हरे, आप अच्छी दिल्लगी करते हैं, भला जिस राजा की वदौलत मैं इस दर्जे को पहुच रहा हूँ और इतना सुख भोग रहा हूँ उसी के विपक्ष में हुई किसी कमेटी का मेम्बर हो सकता हू ? आज भी अगर मुझे उस कुमेटी का पता लग जाय और सभासदो का नाम मालूम हो जाय तो मैं एक एक को चुन कर कुत्ते की मौत मारू और कलेजा ठडा करूँ ! गदाधर० । मुस्कुराता हुआ) कदाचित् ऐसा ही हो, मगर इस विषय पर नाज मुझसे वहस न कीजिए जाने दीजिए, अपना हाल कहिए । मैं उस कुमेटो का हाल प्रच्छी तरह जानता हूँ। दारो० । (जिसका चेहरा गदाधरसिह की वातो से कुछ फीका पड गया था) पाप ही की तरह हमारे महाराज के छोटे भाई शकरसिंहजी का भी उस कुमेटो के विपय में मुझ पर शक पड गया है । उनका भी यही कथन है कि मै उस कुमेटी का मेम्बर हू । गदाधर० । ठीक है, शंकरसिंहजी बडे ही होशियार और बुद्धिमान आदमी है, आपके महाराज की तरह वोदे और वेवकूफ नही है जिन्हें आप मदारी के वन्दर की तरह जिस तरह चाहते हैं नचाया करते हैं। दारोगा० । वेशक वे बहुत होशियार और तेज प्रादमी है मगर मुझे विश्वास हो गया है कि वे मेरी जड खोदने के लिए तैयार है । यद्यपि मै अपने को चालाक और धूर्त लगाता हू मगर सच कहता हूं कि शकरसिंहजी का मुकाबला किसी तरह नही कर सकता ।तिलिस्म के विपय में भी जितनी जनकारी उनको है उतनी हमारे महाराज को नही है । कुवर गोपालसिंहजी को भी वह हद से ज्यादा प्यार करते हैं । अभी थोडे दिन का जिक्र है

  • इस कुमेटो का हाल चन्द्रकान्ता सन्तति में लिखा जा चुका है। इसी

फुमेटी का हाल इन्दिरा ने अपने किस्से में दोनों कुमारो से वयान किया था।