पृष्ठ:भूतनाथ.djvu/३३७

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भूतनाथ १०२ . आदमियो को धोखा दिया चाहता है । भूत० । (वही चाह के साथ) मै जरूर उसकी तस्वीर देखू गा और पहिचानू गा। भीम ने अपनी जेब से निकाल कर एक पीतल की डिबिया भूतनाथ के हाथ मे दी और कहा, "देखो हिफाजत से खोलो, इसी के अन्दर उसकी तस्वीर है।' भूतनाथ ने भीम के हाथ से डिबिया ले ली और दो कदम वढ कर चन्द्रमा की चादनी मे वह डिविया खोलने लगा। डिबिया वडी मजबूती के साय वन्द थी और हल्के हाथो से उसको खुलना कठिन था अस्तु गर्दन झुका कर और दोनो हाथो से जोर लगा कर भूतनाथ न वह डिविया खोली। उसके अन्दर बहुत हल्की और गर्द के समान बारीक वुकनो भरी हुई थी जो झटके के साथ डिविया खुलने के कारण उसमें से उछली और उठ कर भूतनाथ की प्रास्त्र और नाक मे पड गई। वह बहुत ही तेज वेहोशी की बुकनी थी जिसने भूतनाथ को बात करने को भी मोहलत न दी । वह तुरत चक्कर खाकर जमीन पर गिर पड़ा और बेहोश हो गया । भीम ने झपट कर अपनी डिविया सम्हाली और भूतनाथ के हाथ से लेकर अपनी जेब में रख लो, इसके बाद अपने लवादे मे भूतनाथ की गठरी वाधी और उसे पीठ पर लाद एक तरफ का रास्ता लिया। अब उधर का हाल सुनिये । भोम के साथ ही जाकर भूतनाथ तो बहुत दूर निकल गया मगर दारोगा अपनी जगह से न हिला । उसने मकान का दर्वाजा खोला और जमना सरस्वती तथा इन्दुमात को गिरफ्तार करने फा उद्योग करने लगा। दर्वाजा खोलता हुआ वह एक दालान में पहुचा, जिसके दोनो तरफ दो काठडिया थी और उन सभी कोठडियो के दर्वाज किन तरह खुलते थे इसका पता केवल देखने से नहीं लग सकता था। कि पी खास तीब ने दारोगा ने वाई तरफ वाली कोठरी का दर्वाजा खोला और हाथ में नगी तलवार लिए हुए उसके अन्दर घुसा। यह एक छोटी सी मुरग पी जिसमें दस वाहर हाय चल कर दारोगा एक बारहदरी में पहुंचा