पृष्ठ:भूतनाथ.djvu/३३८

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तीसरा हिस्सा जहा विल्कुल ही अन्धकार था, सिर्फ दो तीन जगह किमी मूरास की राह से चन्द्रमा की रोशनी पड रही थी मगर उससे वहा का अन्धकार दूर नही हो सकता था। दारोगा को विश्वास था कि जमना, सरस्वती और इन्दुमति जरूर हमी दालान में होगी और उनके हाथ में किसी तरह का कोई हर्वा भी जरूर होगा, इसी स्याल ने उसकी हिम्मत न पडो कि वह इस अन्धकार मे श्रागे की तरफ वढे अस्तु वह चुपचाप खडा रह कर वहा की पाहट लेने लगा । कुछ ही देर बाद किसी के धीरे धीरे बोलने को आवाज उसके कान में आई और उसके बाद मालूम हुआ कि कई आदमी पापुस मे धोरे धीरे बातें कर रहे है । आवाज हल्की और नाजुक यो इसो लिए दारोगा समझ गया कि जरर यह जमना सरस्वती और इन्दुमति है । दारोगा ऐयारी को छोटा सा वटुग्रा अपने कपडो के अन्दर छिपाये हुए था जिसमे मे उसने टटोल कर एक छोटी डिबिया निनाली, उस डिविया में कई तरह के सटके और पुरजे लगे हुए थे। दारोगा ने एक खटका दवाया जिसमे वह डिविया चमकाने लगी और उसरी रोशनी ने वहा के अन्धकार को अच्छी तरह दूर कर दिया । अव दरोगा ने देख लिया कि उसके सामने दानान में तीन प्रोग्तें हाथ में गजर लिए खटी है। जमना सरस्वती और इन्दुमति को दारोगा अच्छी तरह पहिचानता न था मगर सुनो सुनाई वातो ने वह अनुमान जरूर कर सकता था । उस गौक पर तो उने यह मालूम हो था कि यहा पर जमना मरम्मती और हुन्दुमति विराज रही है और वे तीनो घोरत अपनो असल मूरत में भी पी सलिए दारोगा को विश्वास हो गया कि जमना गरम्यती और इन्दुमनि ये ही है। दारोगा ने उनी जगह गरे रह कर जमना की तरफ देखा और नहा, "तुम लोग मुझो व्यर्थ ही डर कर भाग रही हो ! मैं तुम्हारा दुश्मन नही और न तुम्हारे किती दुरमन का भेजा हुमा है।" जमना० । फिर तुम कौन हो और हम लोगो का पीछा पयो कर रहेहो? दारोगा । म एम तिलिस्म का पहरेदार और प्रभाकरसिंह का भेजा