पृष्ठ:भूतनाथ.djvu/७९

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? भूतनाथ भूत० । (दिल्लगी के तौर पर हस कर) बहुत खासे ! यह आपसे किसने कह दिया है कि भूतनाथ ऐसा पगला हो गया है कि जो कुछ उसे कहोगे वह विश्वास कर लेगा। प्रभा० । तो क्या मैं गप्प उडा रहा हू भूत० । थगर गप्प नहीं तो दिल्लगो ही सही ! प्रभा० । नही कदापि नही , मुझे आश्चर्य होता है कि तुम यहा के रहने वाले हो कर उस मूर्ति का गुण नही जानते और यदि मैं कुछ कहता भी हूँ तो दिल्लगी उडाते हो । अस्तु जाने दो अव में इस विषय में कुछ भी नही कहूगा हो यदि तुम चाहोगे तो सावित्त कर दूगा कि वह मूर्ति बोलती है और त्रिकालदर्शी है । अच्छा जानो गुलावसिंह को जल्द भेजो कि मैं उससे मिल कर विदा होऊ । भूत० । तो आप मेरे स्थान पर ही क्यो नही चलते उस जगह आपको बहुत आराम मिलेगा, गुलावसिंह से मुलाकात भी होगी और साथ ही इसके मेरा भ्रम भी दूर हो जायगा । प्रभा० । नहो , अव मै वहा न जाऊंगा। मैं उसो शिवालय में चल कर बैठता हू, तुम गुलावसिंह को उसी जगह भेज दो मैं मिल लू गा, बस अव इस विपय में जिद न करो। भूत० । प्रभाकरसिंहजी ! मैं खूब जानता हूं कि आप क्षत्री हैं और सच्चे वहादुर है, आपको वीरता मौरूसी है, खानदानी है, नि सन्देह भापके वडे लोग जैसे वीर पुरुप होते पाए है वैसे ही आप भी है, मगर आश्चर्य है कि आप मुझे कुछ ऐयारी गको वात करके धोखे में डाला चाहते है... अच्छा अच्छा, मेरी बातो से यदि आपकी भृकुटो चढती है तो जाने दीजिए में कुछ न कहूंगा, जाता हूँ और गुलाबसिंह को बुलाए लाता है। इतना कह कर भूतनाय ने जफील वजाई जिसकी अावाज नुन कर उसके तीन शागिर्द वात को वात मे यहां श्रा पहुंचे । भूतनाप उन्हें ईशारे में कुछ समझा कर विदा हुपा और अपनी घाटी की तरफ चला गया ? प्रभाकर-