पृष्ठ:भूषणग्रंथावली.djvu/१०७

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[ १६ ] उदाहरण-मालती सवैया छाय रही जितही तितही अतिही छवि छीरधि रंग करारी। भूपन सुद्ध सुधान के सौधनि' सोधति सी धरि ओप उज्यारी ।। वों तम तोमहि चाविकै चंद चहूँ दिसि चाँदनि चार पसारी । ज्यों अफजल्लहि मारि मही पर कीरति श्री सिवराज बगारी॥४२॥ द्वितीय प्रतीप लक्षण-दोहा करत अनादर व को, पाय और उपमेय । ताहू कहत प्रतीप जे भूपन कविता प्रेय ।।४।। उदाहरण-दोहा शिव ! प्रताप तव तरनि सम, अरि पानिप हर मृल । गरव करत केहि हेत है, बड़वानल तो तूल४ ॥४४|| तृतीय प्रतीप ____ लक्षण-दोहा आदर घटत अब" को, जहाँ वयं के जोर । महलों को। २ यह वोजापुरी सरदार था। विशेष हाल छंद नं०६३ के नोट में देखिए। इस अवसर पर शिवाजी के साथ प्रधान लोगों में तानाजी मल्.सरे, यशा जो कंक और नोव नहालय थे । हाल सन् १६५९ ई० का है। ३ उपमेय । ४ तुल्य । यहाँ एक हो गुण कहे जाने और उसकी भी निन्दा हो जाने से विरमता हो गई है। यदि कई गुण होते और अन्य उनमें से एक ही एक में नम या अधिक होते तो विरसता न माती। ५पमान।