पृष्ठ:भूषणग्रंथावली.djvu/११४

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[ २३ ] ता बिगिर है करि निकाम निज धाम कहँ आकुत महाउत सुआँकुस लै सटक्यौ ॥ ३ ॥ रूपक के दो अन्य भेद (न्यूनाधिक ) लक्षण-दोहा घटि बढ़ि जहँ वरनन करै करिकै दुहुन अभेद । भूषन कवि औरो कहत द्वै रूपक के भेद ॥ ६४ ॥ उदाहरण-कवित्त मनहरण (न्यूनाभेद रूपक) साहि तनै सिवराज भूषन सुजस तब बिगिर कलंक चंद उर आनियतु है। पंचानन एक ही बदन गनि तोहि गजानन गज बदन बिना बखानियतु है। एक सीस ही सहससीस कला करिवे को दुहूँ हग सों सहस हग मानियतु है। दुहूँ कर सों सहसकर मानि- यतु तोहि दुहूँ बाहु सों सहसबाहु जानियतु है ।। ६५ )॥ जिरहबलूतर पहिन, कर और व्याघनख छिपा कर उससे मिलने गए। अफपाल ने भेंटने के बहाने से शिवाजी को बगल में जोर से दबा कर कटार से मारना चाहा, पर शिवाजी बच गए। उन्होंने व्याघनख से अफजल को पसली नोच ली ( छंद नं० २५२ देखिए) और तलवार से उसका काम तमाम किया। उन्होंने पहले ही से अपनी सेना लगा रक्खी थी, सो एक दम वह अफ़जल की फ़ौज पर टूट पड़ी और उसे तितर बितर कर दिया। यह घटना सन् १६५९ ईस्वी की है। .. . १ वगैर, विना। २ याकूत खां इतिहास में कई थे। एक याकूत खाँ शाहजहाँ का सरदार था। यहाँ बोजापुरी. सरदार उस सिद्दी क़ासिम याकूत खाँ से प्रयोजन है जो सन् १६७१ में शिवाजी की सेना से दंडराजपुर में लड़ा था।