पृष्ठ:भूषणग्रंथावली.djvu/११८

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[ २७ ] . उदाहरण-मनहरण दंडक तुम सिवराज ब्रजराज अवतार आजु तुमही जगत काज पोषत भरत हो। तुम्हें छोड़ि याते काहि विनती सुनाऊँ मैं तुम्हारे गुन गाऊँ तुम ढीले क्यों परत हौ ? ॥ भूपन भनत वहिकुल मैं नयो गुनाह नाहक समुझि यह चित मैं धरत हौ । और वाँभनन देखि करत सुदामा सुधि मोहिं देखि काहे सुधि भृगु की. करत हौ ? ॥ ७ ॥ भ्रम + लक्षण-दोहा . आन बस्तु को आन मैं होत जहाँ भ्रम आय । तासों भ्रम सब कहत हैं, भूपन सुकवि बनाय ।। ७६ ॥ उदाहरण-मालती सवैया पीय पहारन पास न जाहु यों तीय वहादुर सों कहैं सोपै । कौन बचे है नवाब तुम्हें भनि भूषन भौंसिला भूप के रोपै ? । 2 उस (ब्राह्मण अर्थात् भृगु जी के ) कुल में। भूपण कहते हैं कि मुझपर ब्राहाण कुल में उत्पन्न होने का नया गुनाह आप लगाते हैं और विष्णु के अवतार होने के कारण मुझ पर आप नाराज होते हैं, क्योंकि भृगु ने विष्णु को लात मारी थी। + भ्रान्तिमान में भ्रम मात्र है तथा उल्लेख में स्थापित गुण. सच्चाई के कारण यथार्थता भी लिये हुये रहता है ।