पृष्ठ:भूषणग्रंथावली.djvu/११९

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[ २८ ] 'बंदि सइस्तखहू को कियो जसवंत से भाऊ करने से दोपै । सिंह सिवा के सुवीरन सों गो अमीर न वाचि गुनीजन घोपै ॥७७ ।। संदेह+ लक्षण-दोहा कै यह के वह यों जहाँ होत आनि संदेह । भूपन सो संदेह है या मैं नहिं संदेह ।। ७८ ।। उदाहरण-कवित्त मनहरण आवत गुसुलखाने ऐसे कछु त्योर ठाने जाने अवरंग जू के प्रानन को लेवा है। रस खो भए ते अगोट आगरे मैं सातो इस छ द में भ्रमालकार निकलता नहीं है, हाँ खाँचतान से कह सकते हैं कि शाइस्ता खाँ में वन्दी होने का भ्रम हो गया, यद्यपि वे वन्दी नहीं हुए थे वरन् केवल भगाये गये थे। भ्रान्तिमान में सादृश्य के कारण प्रस्तुत में अप्रस्तुत का धोखा होता है। २ करणसिंह बीकानेर के महाराज थे। ये दो हजारी थे। इनका युद्ध शिवाजी से सन् १६५७ में अहमदनगर में हुआ था। ये कारतलब खाँ तथा खान दौरां नौशेरो खाँ के साथ सेनानायक थे। ३ घोषणा करता है। + सन्देह में समता के कारण उपमेय में उपमान का संशय कई प्रकार से किया जाता है किन्तु निश्चय किसी पर नहीं होता। ४ रस खोटा होना ( औरंगजेब ने जिन वादों से शिवाजी को बुलाया था उनका पालन न होने से रस जाता रहा ) और आगरे में लप्पाझप्पी कर शिवाजी ने औरंगजेब की सातों चौकियाँ लाँघ कर रेवा ( नर्मदा नदी ) पार आ उसी को अपने राज्य की सीमा बनाया।