पृष्ठ:भूषणग्रंथावली.djvu/१२०

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[ २९ ] चौकी डाँकि आनि घर कीन्हीं हद रेवा है। भूषन भनत वह चहूँ चक्क चाहि कियो पातसाहि चकता की छाती माहिं छेवा है। जान्यो न परत ऐसे काम है करत कोऊ गंधरब देवा है कि सिद्ध है कि सेवा है ॥ ७९ ॥ - शुद्ध अपन्हुति = शुद्धापन्हुति लक्षण-दोहा आन बात आरोपिए साँची बात दुराय । शुद्धापन्हुति कहत हैं भूषन सुकवि बनाय ।। ८० ॥ उदाहरण-मनहरण दंडक चमकती चपला न, फेरत फिरंगें' भट इंद्र को न चाप रूप वैरप समाज को । धाए धुरवा न, छाए धूरि के पटल, मेघ गाजिवो न बाजिवो है दुन्दुभि दराज को ।। भौंसिला के डरन डरानी रिपुरानी कहैं, पिया भजौ, देखि उदौ पावस के साज को। धन की घटा न, गज घटनि सनाह साजे भूषण भनत आयो सेन सिवराज को ।। ८१ ॥ • सभी प्रकार की अपन्हुति में आहार्य्यता रहती है । शुद्धापन्हुति में मुख्य उपमेय का निषेध होकर अतथ्य उपमान का स्थापन होता है। १ शायद भाला या विलायती तलवार । २ झंडी।