पृष्ठ:भूषणग्रंथावली.djvu/१३६

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चलख रूमै अरितिय छतियाँ दलति हूँ॥ भूपन अनत साहि तनै सिवराज एते मान तव धाक आगे दिसा उवलति हैं। तेरी चमू चलिवे की चरचा चले ते चक्रवर्तिन की चतुरंग चमू विचलति हैं ॥ ११७ ॥ अत्यंतातिशयोक्ति . लक्षण-दोहा जहाँ हेतु ते प्रथम ही प्रगट होत है काज । अत्यंतातिसयोक्ति सो कहि भूषन कविराज ॥११८॥ उदाहरण-कवित्त मनहरण मंगन मनोरथ के प्रथमहि दाता तोहिं कामधेनु कामतरु सो गनाइयतु है। याते तेरे गुन सब गाय को सकत कवि, बुद्धि अनुसार कछु तऊ गाइयतु है ।। भूषन भनत साहि तनै सिवराज निज वखत बढ़ाय करि तोहि ध्याइयतु है । दीनता को डारि औ अधीनता विडारि दीह दारिद को मारि तेरे द्वार आइयतु है ॥११९॥ पुनः-दोहा कवि तरुवर सिव सुजसरस सीचे अचरज मूल । सुफल होत है प्रथम ही पीछे प्रगटत फूल ।।१२०॥ १ अफगानिस्तान का एक प्रसिद शहर । २ टरकी।

  • कवि ने सम्वन्धातिशयोक्ति नहीं कही है।

३ फूलना, प्रसन्नता । श्लेप में कथन है।