पृष्ठ:भूषणग्रंथावली.djvu/१४७

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समासोक्ति भूषन कहत कबि कोबिद सब कोय ॥१५६|| उदाहरण-दोहा वडो डील लखि पील' को सवन तज्यो वन थान । धनि सरजा तू जगत मैं ताको हलो गुमान ।। १५७ ।। तुही साँच द्विजराज है तेरी कला प्रमान । तो पर सिव किरपा करी जानत सकल जहान ॥ १५८ ॥ अपरंच-कवित्त मनहरण उत्तर पहार विधनोल२ खंडहर झारखंडहू प्रचार चारु केली है बिरद की । गोर" गुजरात अरु पूरब पछाँह ठौर जंतु जंगलीन की वसति मारि रद की ॥ भूषन जो करत न जाने बिनु घोर सोर भूलि गयो आपनी ऊँचाई लखे कद की। खोइयो प्रवल मदगल गजराज एक सरजा सों वैर कै बड़ाई निज मद की। १५९॥ १ हाथी, यहाँ औरंगजेब। २ इसका नाम दिदरूर या विदनूर भी था। यह मंगलोर (मैसूर ) के पास इसी नाम के प्रांत की राजधानी थी। इसे शिवाजी ने सन् १६६४ में जीता। ३ चंबल और नर्मदा के वीच तुलतानपुर के समीप एक कस्वा । ४ छंद नं० ११२ का नोट देखिए । ५ गोर नामक शहर अफगानिस्तान में था जहाँ से शिहाबुद्दोन गोरी आया था ।