पृष्ठ:भूषणग्रंथावली.djvu/१५८

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[ ६७ ] लाल देखि भूपन सुकवि बरनत हरखत हैं। क्यों न उतपात होहिं चैरिन के झुंडन में कारे घन उमड़ि अँगारे बरखत हैं ॥१९०।। और विभावना (छठी विभावना ) लक्षण-दोहा जहाँ प्रगट भूपन भनत हेतु काज ते होय । सो विभावना औरऊ कहत सयाने लोय ॥ १९१ ॥ . उदाहरणदोहा अचरज भूपन मन बढ्यो, श्री सिवराज खुमान । तव कृपान धुव धूम ते, भयो प्रताप कृसान ।। १९२ ॥ पुनः-कवित्त मनहरण साहि तनै सिव ! तेरो सुनत पुनीत नाम धाम धाम सबही को पातक कटत है । तेरो जस काज आज सरजा निहारि कविमन भोज विक्रम बथा ते उचटत है ।। भूपन भनत तेरो दान संकलप जल अचरज सकल मही में लपटत है । और नदी नदन ते कोक- नद होत तेरो कर कोकनद नदी नद प्रगटत है ॥ १९३ ॥ विशेषोक्ति लक्षण - दोहा जहाँ हेतु समरथ भयहु प्रगट होत नहिं काज । . तहाँ विसेसोकति कहत भूपन कबिसिरताज ॥ १९४ ॥ 7. विशेपोक्ति में भी कारण की पूर्णता तथा असंभवनीयता दोनों का आभास . मात्र, वास्तविकता नही। विरोधागास में कार्य कारण दोनों पाधक बाध्य हैं। विभावना में कार्य याध्य है, तथा विशेपोक्ति में कारण याध्य ।