पृष्ठ:भूषणग्रंथावली.djvu/१६७

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प्रहर्षण
लक्षण-दोहा

जहँ मन वांछित अरथ ते प्रापति कछु अधिकाय । तहाँ प्रहरपन कहत हैं भूपन जे कविराय' ।।२१४ ।। उदाहरण-मनहरण दंडक ।। साहि तनै सरजा कि कीरति सों चारो ओर चाँदनी बितान छिति छोर छाइयतु है । भूपन भनत ऐसो भूप भौसिला है जाको द्वार भिच्छुकन सों सदाई भाइयतु है ॥ महादानि सिवाजी खुमान या जहान पर दान के प्रमान जाके यों गनाइयतु है। रजत को हौस किए हेम पाइयतु जासों हयन की हौस किए हाथी पाश्चतु हैं ॥ २१५॥ विषादन लक्षण-दोहा जहँ चितचाहे काज ते उपजत काज विरुद्ध । ताहि विपादन कहत हैं भूपण बुद्धि विसुद्धः ।। २१६।। उदाहरण-मालती सवैया दारहिं दारि मुरादहि मारि कै संगर साह सुजै १ वास्तव में यहाँ दूसरे प्रहर्पण के लक्षण और उदाहरण हैं । भूपन ने पहला और चौसरा प्रहण नहीं लिखा है। २,३,४, वे तीनों औरंगजेब के माईथे। इनका हाल प्रसिद्ध हो है कि इन्हें मार- पर औरंगजेन्द्र सिंहासन पर बैन । ____* भूषन का विपादन तात्तरे विषम ने मिला जाता है; किन्तु इन्होंने विषम एक हो कहा है, तो गडबड़ा नहीं पड़तो। सूली देकर।