पृष्ठ:भूषणग्रंथावली.djvu/१७०

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[ ७९ ] राव अमरे गो अमरपुर समर रही रज तंत ॥२२५।। पुनः-कवित्त मनहरण । सिवाजी खुमान सलहेरि में दिलीस दल कीन्हों. कतलाम करवाल गहि कर मैं । सुभट सराहे चंदावत कछवाहे मुगलो पठान ढाहे फरकत परे फर मैं । भूपन भनत भौसिला के भट उदभट जीति घर आए. धाक फैली घर घर में। मारु के करैया अरि अमर पुरै गे तऊ अौं मारु मारु सोर होत है समर मैं ॥२२६।। व्याघात लक्षण-दोहा और काज करता जहाँ करे औरई काज । ताहि कहत व्याघात है, भूपन कवि सिरताज ।।२२७|| उदाहरण--मालती सवैया ब्रह्म रचै पुरुपोत्तम पोसत संकर सृष्टि सँहारनहारे। तू १ अमर सिंह राव तो अमरपुर चला गया पर उसकी राज्यश्री ( यहाँ पर वीरता) निराधार युद्धस्थल में रह गई। २"हाथ में तलवार लेकर" शिवाजी इस युर में नहीं लड़े थे। वे तो इस युद्ध में थे ही नदी और उनके मंत्री मोरोपंत नामक प्रामण ने यह युद्ध जीता था। हाँ "लदै सिपाहो और नाम दो सरदार का ।" इसका हाल छ० नं० ९७ के नोट में देखिए।