पृष्ठ:भूषणग्रंथावली.djvu/१७२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
[ ८१ ]

सवाई ।। राज सुबुद्धि सों दान बढ्यो अरु दान सों पुन्य समूह सदाई । पुन्य सो बाढयो सिवाजि खुमान खुमान सों बाढ़ी जहान भलाई ।। २३१ ॥

पुनः-दोहा

मुजस दान अरु दान धन धन उपजे किरवान । सो जग मैं जाहिर करी सरजा सिवा खुमान ।। २३२ ।।

एकावली
लक्षण-दोहा

प्रथम वरनि जहँ छोढ़िए जहाँ अरथ की पाँति । बरनत एकावलि अहे कवि भूपन यहि माँति ।। २३३ ।।

उदाहरण-हरिगीतिका छंद

तिहुँ भुवन में भूपन भने नरलोक पुन्य सुसाज मैं । नरलोकर मैं तीरथ लस महि तीरथों कि समाज में ।। महि में बड़ी महिमा भली महिमें महारज लाज मैं। रज लाज राजत आजु है मह- राज श्री सिवराज में ।। २३४ ॥ १ कारणमाला में कारण कार्य का संबंध होता है, पर एकावली में नहीं होता. तथा मालादीपक में दीपक का संबंध होता है सो मी एकावली में नहीं होता। २ नरलोक में तीरयों की समाज में महि ( एक ) तीरथ लसै। ३ महिम ( महिमाही ) में रजलाज ( बड़ी ) । यहाँ दूरान्वयो दूपण है।