पृष्ठ:भूषणग्रंथावली.djvu/१८८

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[ ९७ ] जिनके सुभाय जंग दै मिजाज के ॥ भूपन भनत बादसाह को यों लोग सब वचन सिखावत सलाह की इलाज के। डावरे की बुद्धि है के वावरे न कीजै वैरु रावरे के वैर होत काज सिवराज के ॥ २७६ ॥ अन्यच्च (गुणेन गुणो) । दोहा नृप सभान मैं आपनी होन बड़ाई काज । साहितनै सिवराज के करत कवित कबिराज ।। २७७ ॥ ___ अपरंच (दोपेण दोपो) । दोहा सिव सरजा के बैर को यह फल आलमगीर । छूटे तेरे गढ़ सवै कूटे गए वजीर ॥ २७८ ।। पुनरपि । मनहरण दंडक दौलति दिली की पाय कहाए अलमगीर वन्चर' अकबर के विरद विसारे तें। भूपन भनत लरि लरि सरजा सों जंग निपट अभंगगढ़कोट सब हारे ते ॥ सुधयो न एको साज भेजि भेजि वेहीकाज बड़े बड़े वे इलाज उमराव मारे तैं। मेरे कहे मेर का, सिवाजी सों वैर करि गैर करि नैर निज नाहक उनारे ते ॥ २७९ ॥ १ वावर वादशाए, औरंगजेब के पाँच पुस्त ऊपर वाला भारत का पहला मुग़ल बादशाह था। २ अकवर औरंगजेब का परदादा था। ३ गोर करि पेजा करके। ४ नगर; देश।