पृष्ठ:भूषणग्रंथावली.djvu/१९१

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[ १०० ] अकथ युत' गथ के । भूषन यों साज्यो रायगढ़ सिवराज रहे देव चक चाहि के वनाए राजपथ के || विन3 अवलंब कलिकानि आसमान मैं होत विसराम जहाँ इंदु औ उदथ के । महत उतंग मनि जोतिनकेसंग आनि कैयो रंग चकहा गहत रबि रथ के ।। २८८ ॥ पूर्वरूप लक्षण-दोहा प्रथम रूप मिटि जात जहँ फिरि वैसोई होय । भूषन पूरव रूप सो कहत सयाने लोय ॥ २८९ ॥

  • उदाहरण । मालती सवैया

ब्रह्म के आनन ते निकसे ते अत्यंत पुनीत तिहुँ पुर मानी। १ वे ( तालाव ) अकथनीय हैं और उनके साथ कितनी ही गाथाएँ लगी हैं अर्थाद: वे इतिहासों और पुराणों में प्रसिद्ध हैं। २ इसका वर्णन छंद नं० १४ के नोट एवं छंद नं० १५, २४ में देखिए । जान पड़ता है कि वह वर्णन रायगढ़ ही का है न कि राजगढ़ का । भूमिका देखिए। ३ बिना किसी चीज़ पर सहारा पाने के सूर्य और चंद्रमा आसमान में परेशान हो कर जिस रायगढ़ पर विश्राम ले लेते हैं। ४. परेशानी। ५ उदय व अस्त होनेवाला, सूर्य। . ६ के संग आनि = से मिलान होकर । ७ पहिए।

  • भूषण के चारों उदाहरणों में प्रथम पूर्व है । द्वितीय भेद आपने न कहा

न उसका उदाहरण दिया।