पृष्ठ:भूषणग्रंथावली.djvu/१९६

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[ १०५ ] भूपन हालि उठे गढ़ भूमि पठान कबंधन के धमके ते । मीरन के अवसान गये मिलि धोपनि' सों चपला चमके ते ॥ ३०५ ।।. विशेषक - लक्षण-दोहा भिन्न रूप सादृश्य में लहिए कछू विसेख । ताहि बिशेपक कहत हैं भूपन सुमति उलेख ।। ३०६ ।। उदाहरण-कवित्त मनहरण अहमदनगर के थान किरवान लै कै नवसेरी खान ते खुमान भिस्यो वल ते । प्यादन सों प्यादे पखरैतन सों पखरैत वखतरवारे वखतरवारे हल ते ॥ भूपन भनत एते मान घमसान ___१ संगीन की भाँति एक हथियार । यथा “छत्रसाल जेहि दिसि पिले धारि धोप कर माहिं । तेहि दिसि सीस गिरीस पे बनत बटोरत नाहिं" ॥ ( छत्रप्रकाश ). यहाँ अफजलखों वाली लड़ाई का इशारा भूपण जी ने किया है। जब खाँ दिन में मारा जा चुका था, तब शाम को किले में पांच तोपं दागी गई। इस पर नेताजी पालकर तथा मोरोपंत ने खाँ को सेना पर रात में आक्रमण करके हजारों आदमियों को मारा और सेना भागी। यह सितम्बर सन् १६५९ की घटना है। यहाँ १६७०. वाली महोली या अँजोरा की लड़ाइयों का भी कथन सम्भव है। २ निजामशाही "वादशाहों" की राजधानी । यहाँ पर शिवाजी ने नौशेरी खाँ को सन् १६५७ में लूटा । यही १६६१ में शिवाजी के सेनापति प्रतापराव गूजर ने वादशाही अफ्सर महकूब सिंह को मारा । ३ नौशेरी खाँ को खानदौरा को उपाधि थी ( छंद नं० १०३ का नोट: देखिए । ) कारतलब खाँ तथा करण सिंह भी इसी युद्ध में लड़े। शिवानो ने अहमद. नगर को इस मौके पर थोड़ा बहुत लूटा ।